चुनावी माहौल में झूठ के सहारे बनाया जा रहा है भौकाल, जीतने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं नेताजी
सच बोलने से इसीलिए परहेज करते हैं नेता
झूठ बोलना मजबूरी भी और जरूरी भी
कहते हैं कि राजनीति झूठ की बुनियाद पर खड़ी होती है और विकसित भी होती है, बस सावधानी इस बात ही होनी चाहिए कि झूठ भी उतने सलीके से बोला जाय कि सामने वाली जनता और सपोर्टर को एकदम सच लगे और एकदम हकीकत जैसा दिखा। कुछ ऐसा ही ड्रामा आजकल जनता के आगे सत्तापक्ष व विपक्ष के नेता कर रहे और कह रहे हैं। हर नेता को यह लग रहा है कि दूसरा दल व नेता झूठ बोल रहा है..वह कुछ नहीं करेगा..जनता के असली शुभ चिंतक हो हम ही हैं।
आप को बता दें कि यही हाल चंदौली जिले के नेताओं का है..आजकल जनचौपाल लगाकर और घर-घर जाकर हर किसी का हाथ जोड़ रहे हैं और वैसे भी मतदाताओं को भइया-बाबू-चच्चा कह रहे हैं, जिनकी ओर देखने व उनके बारे में सोचने का पिछले पांच सालों में मौका नहीं मिला। एकबार फिर से उनको इस बात का भरोसा दिला रहे हैं कि अबकी बार बस एक मौका और दे दो तो आपके सारे संकट दूर हो जाएंगे..। ऐसा होने वाला नहीं है...लेकिन चुनाव में ऐसा कहना मजबूरी है।
गोरखनाथ का कहना है कि जो वोटर जागरूक है वह जातियों व दलों में बंटा है। वह निहित स्वार्थबस या तो किसी के साथ है या तो किसी के विरोध में। जो लोग वोट देकर पांच साल के लिए दरकिनार कर दिए जाने वाले हैं, उनकी आजकल सबको याद आ रही है। उनके लीडर व एजेंट भी सक्रिय हो गए हैं। उनके नाम पर दलों के नेताओं व संभावित प्रत्याशियों के को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं और उनके वोट सेट करने की गारंटी दे रहे हैं। सो नेता भी क्या करे..वह इन एजेंटों को थोड़ा बहुत 'जल-पुष्प' चढ़ाकर अपना एक आदमी लगा रहा है और नब्ज टटोल रहा है कि वह कितना वोट ला सकता है और कितना वोट दिला सकता है।
इतना ही नेता जी लोगों के एजेंटों की टीम या तथाकथित बूथ मैनेजर गांव-गांव जाकर गांव में लिस्ट तैयार कर रहे हैं। यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि गांव का मिजाज कैसा है। गांव के लोग किधर जा रहे हैं। कुछ को तत्काल मनाने की हर कोशिश की जा रही है। तो किसी से पिछली गलती भूल जाने की बात कही जा रही है। लिस्ट बनाने वाले यह भी कह दे रहे हैं कि लिस्ट इसलिए तैयार हो रही है कि उसको सरकार बनने पर योजना का लाभ दिलाया जाएगा। यह क्यों कहा जा रहा है..यह आप भी जानते हैं। ऐसा काम केवल सत्ताधारी दल के लोग नहीं विरोधी दल वाले भी करवा रहे हैं, ताकि चुनावी मैनेजमेंट गड़बड़ा न सके।
गांव के लोगों का कहना है कि लिस्ट का खेल पुराना है..यह इसीलिए बन रही है कि किसको किस तरह से मनाना है और किसके घर क्या पहुंचाना है। क्योंकि बूथ जीतने वाले ही चुनाव जीतते हैं। सत्ता पक्ष के लोग हों या विपक्षी दल के लोग बूथ के बाद घर-घर की जानकारी ले रहे हैं और कौन-किधर जा रहा है और किसको कौन मना रहा है....कौन किसको भड़का रहा है.....बाकायदा इसकी भी जांच पड़ताल कर रहे हैं। कुछ नेता इसके लिए एक आदमी रखकर काम करवा रहे हैं और कुछ एक के साथ दूसरी फॉलोअप टीम रखकर निगरानी करा रहे हैं कि पहली वाली रिपोर्ट सही है कि नहीं..जांच के लिए एक के पीछे दूसरा आदमी इसीलिए लगा रहे हैं, ताकि कहीं से कोई गड़बड़ न हो जाए।
नेताजी की चुनावी मजबूरी
कुछ ऐसा ही काम कर रहे एक नेताजी से जब पूछ लिया तो बोल उठे..सबको अपना काम कराना है..चाहे वह सही हो या गलत..ना किसी को सुनना है नहीं....तो मैं भी तो नेता हूं..हामी भरना मेरी मजबूरी है। हामी भर देने से वह मेरे साथ हो लेगा और चुनाव तक साथ साथ घूमेगा। चुनाव में फ्री में घूमने वाले कहां मिलते हैं। इसीलिए यह सब कहना पड़ता है।
दूसरे नेता की भी कुछ ऐसी ही राय है। चुनावी सीजन में सब कुछ चलता है..चुनाव जंग की तरह है..जहां जीत मायने रखती है..सच या झूठ नहीं। झूठ नहीं बोलूंगा तो भौकाल कैसे बनेगा, भौकाल नहीं बनेगा तो चुनाव कैसे जीतूंगा.. रहने दीजिए सत्य व इमानदारी का ज्ञान... इससे चुनाव नहीं जीता जाता है भाई साहब। 7 मार्च तक यही सब चलेगा और जो जीत जाएगा..उसके सात खून माफ हैं..जो हार जाएगा वह पांच साल मुंह लटका घूमेगा और अगली बार और अच्छी तरह से झूठ बोलने की तैयारी करेगा।
चुनाव बाद सब भूल जाएंगे
सभी संभव व असंभव वायदे करके सबको खुश करना होता है। किसी को मना करके अपना वोट घटने की बेवकूफी कौन करेगा। चुनाव बाद सबकुछ लोग भूल जाते हैं। इसीलिए हां करना व काम न होने पर कभी-कभार माफी मांग लेना हम नेताओं की आदत में है। नेतागिरी इसी का नाम है। यह सब कुछ सच्चा व सब कुछ अच्छा नहीं होता है। चुनाव बाद साल दो साल को केवल टरकाकर व बहाने बनाकर लोगों को हटलाया जाता है और फिर अगली सरकार बनने पर प्राथमिकता में काम कराने का आश्वासन दिया जाता है।
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