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ऐसी चर्चा है : सकलडीहा और सैयदराजा विधानसभा में ब्राह्मण क्षत्रिय एकता की होगी परीक्षा, इनके लिए खतरे की घंटी

चंदौली जिले की सकलडीहा और सैयदराजा विधानसभा की सीट भारतीय जनता पार्टी के लिए एक नई मुश्किल खड़ी करने वाली है।
 

सकलडीहा और सैयदराजा की सीट पर आसान नहीं होगी भाजपा की जीत

ब्राह्मण क्षत्रिय को साथ लाने के लिए बनानी होगी कोई बड़ी रणनीति

बाकी तो आप समझदार हैं

 

चंदौली जिले की सकलडीहा और सैयदराजा विधानसभा की सीट भारतीय जनता पार्टी के लिए एक नई मुश्किल खड़ी करने वाली है। भाजपा के लोग जिन वोटरों को अपना बेस वोट और मजबूत जनाधार वाला मान रहे थे, वह वोटर अब जातिगत राजनीति के चक्कर में इधर उधर फिसलने लगा है। अब अपने बिरादरी के नेता को दूसरे बिरादरी से बेहतर साबित करने को होड़ में चंदौली जिले की दो सीटें हाथ से फिसल सकती हैं। इसके लिए निपटाने का संकल्प लेकर बैकडोर से कुछ नेता दूसरे दल के उम्मीदवारों की मदद कर रहे हैं।

दो सीटों पर खतरा

 बताया जा रहा है कि मुगलसराय विधानसभा सीट पर विधायक साधना सिंह का टिकट कटने के बाद चंदौली जिले में कुछ लोग ब्राह्मण बनाम क्षत्रिय का माहौल पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं और सोशल मीडिया के साथ-साथ गांव और मुहल्लों की चौपालों में इस तरह की बातें फैलाई जा रही हैं कि सांसद और कैबिनेट मंत्री डॉ. महेन्द्र नाथ पांडेय  आजकल जनाधार के दम पर आगे बढ़ रहे क्षत्रिय नेताओं से नाराज चल रहे हैं। इसीलिए उन्होंने अपनी पैरवी से साधना सिंह का टिकट कटवा दिया। इसके लिए चंदौली जिला मुख्यालय पर विरोध प्रदर्शन करते हुए उनका पुतला भी फूंका गया था और उनके खिलाफ असंसदीय भाषा का भी उपयोग सार्वजनिक रूप से किया गया था।

सकलडीहा और सैयदराजा विधानसभा के वोटरों में इस बात फैलाने और वोटरों के विभाजित होने में कितनी सच्चाई है यह तो भारतीय जनता पार्टी के लोग या खुद डॉक्टर महेंद्र नाथ पांडेय ही बता सकते हैं, लेकिन जिस तरह से गांव में या विधानसभा इलाके में इस तरह की बातों का प्रचार-प्रसार हो रहा है। वह भारतीय जनता पार्टी के लिए मुश्किल खड़ा करने वाला हो सकता है।

2017 का चुनाव प्रमाण है

 ऐसी चर्चा है कि अगर चंदौली जिले में ब्राह्मण बनाम क्षत्रिय वाली लड़ाई शुरू कराई गई तो इसका सबसे अधिक नुकसान सकलडीहा और सैयदराजा विधानसभा सीटों पर पड़ेगा क्योंकि क्षत्रिय उम्मीदवार को ब्राह्मणों का वोट और ब्राह्मण उम्मीदवार को क्षत्रिय का वोट समेटने के लिए नाकों चने चबाने पड़ सकते हैं। आपको याद होगा कि 2017 में सूर्यमुनी तिवारी के चुनाव हारने के बाद पूरे इलाके में इसी बात की चर्चा थी कि उनको ब्राह्मणों का वोट तो मिला लेकिन क्षत्रिय बिरादरी के उतने वोट नहीं मिले जितना जीतने के लिए मिलना चाहिए था। इसका मतलब साफ था कि भीतरघात किया गया था। यह बात भाजपा को हार के बाद समीक्षा में पता चली या नहीं चली यह तो पार्टी संगठन ही जाने, लेकिन अबकी बार इसका असर सिर्फ सकलडीहा ही नहीं सैयदराजा विधानसभा पर भी पड़ने जा रहा है।

Brahmin and surymuni

लोकसभा चुनाव में दिखा था फर्क

एक जगह चर्चा में लोगों ने कहा कि इसी तरह की राजनीति 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले शुरू हुयी थी, जब विधायक सुशील सिंह लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए जोरशोर से अपना प्रचार प्रसार कर रहे थे। उनके द्वारा भाजपा ज्वाइन कर लेने के बाद और महेन्द्र नाथ पांडेय के रूप में गाजीपुर जिले के प्रत्याशी के आने के बाद इस तरह की जातिवाली राजनीति को भड़कने के पहले दबाने की जीतोड़ कोशिश की गयी और महेन्द्र नाथ पांडेय के आसपास कुछ क्षत्रिय नेताओं को खड़ा करके इस तरह का संदेश दिया गया कि सब साथ-साथ हैं और खुद सांसद ने भी चुनाव जीतने के बाद अपने खास सिपहसालारों में क्षत्रिय नेताओं व कार्यकर्ताओं को ब्राह्मणों से अधिक तवज्जो दी। इसके पीछे कुछ खास कारण और भी थे। यह बात पार्टी के लोगों के साथ साथ चंदौली जिले की जनता भी बखूबी जानती है। कई क्षत्रिय क्षत्रपों को साधने के बाद ही 2019 में सांसद महेन्द्र नाथ पांडेय कड़ी टक्कर के बाद चुनाव जीत पाए थे।   

इस कारण मिला चर्चा को बल

 इसके पीछे तरह-तरह की बातें और चर्चाएं भी होती हैं। लोगों का कहना था इसी दूरी को कम करने के लिए और इस तरह की अफवाह को खत्म करने के लिए अबकी बार जब भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों के नाम फाइनल करके चंदौली जिले की पहली सूची आई तो पहली सूची में विधायक सुशील सिंह के साथ-साथ सूर्यमुनी तिवारी का ही नाम घोषित हुआ और दोनों नेताओं ने एक साथ मंदिरों में दर्शन कर ब्राह्मण क्षत्रिय एकता का परिचय दिखाने की कोशिश की। यह संदेश चंदौली जिले की हकीकत जानने के बाद का था या पार्टी के नेतृत्व का यह तो घोषित उम्मीदवार व पार्टी के संगठन के लोग ही बता सकते हैं। 

ब्राह्मण क्षत्रिय एकता का यह संदेश मतदाताओं तक किस कदर जाएगा और इसका असर किस तरह का होगा यह तो मतगणना के दिन ही पता चलेगा। लेकिन विधानसभा चुनाव में मतदान के पहले दोनों धड़ों के दिल नहीं मिले और वोट बंटे तो भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरे की घंटी होगी। इससे एक ओर जहां सकलडीहा में भारतीय जनता पार्टी का पहली बार सीट जीतने का सपना अधूरा रह जाएगा। वहीं सुशील सिंह का चुनावी मैनेजमेंट भी गड़बड़ साबित हो सकता है। इस संदर्भ में चुनाव प्रचार कर रहे सकलडीहा के भाजपा प्रत्याशी सूर्यमुनी तिवारी और विधायक सुशील सिंह से भी बात करने की कोशिश की गई लेकिन दोनों लोगों से कोई रिस्पांस नहीं मिला।

 अब इस तरह की चर्चा में कितना दम है.. यह तो गली-गली घूमने वाले प्रत्याशी ही बता पाएंगे या मतदान के बाद जब 10 मार्च को रिजल्ट आएगा तो सबको अपने आप पता चल जाएगा। हालांकि इस तरह की चर्चा व अफवाह का विधानसभा चुनाव में फर्क जरूर पड़ता है और अगर इस चर्चा पर क्राइसिस मैनेजमेंट का काम मतदान के पहले नहीं किया गया तो भाजपा को दोनों सीटों पर करारा झटका लगेगा। साथ ही जिले की ब्राह्मण क्षत्रिय एकता भी दागदार होगी।

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