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बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में सरकार की जिम्मेदारी तय हो, सिर्फ़ दिखावे से नहीं चलेगा काम : अजय राय

अजय राय ने कहा कि प्रशासन को पहले से जानकारी रहती है कि गंगा के जलस्तर में वृद्धि से किन-किन गांवों में खतरा उत्पन्न हो सकता है, फिर भी कोई अग्रिम और ठोस तैयारी नहीं होती।
 

जनप्रतिनिधियों से सेल्फी नहीं.. जवाबदेही निभाने की अपील

एक दर्जन से अधिक गांवों में बाढ़ का बढ़ रहा खतरा

प्रशासन की ओर से स्थायी समाधान खोजने की मांग

चंदौली जनपद के बाढ़ प्रभावित इलाकों की दुर्दशा को लेकर एआईपीएफ (AIPF) के राज्य कार्यसमिति सदस्य अजय राय ने सरकार और प्रशासन पर कड़ी टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि हर साल गंगा और अन्य नदियों का जलस्तर बढ़ता है, जिससे जनपद के कई गांव प्रभावित होते हैं, परंतु सरकार और प्रशासन की ओर से कोई स्थायी समाधान नहीं किया जाता। हर साल बाढ़ जैसी आपदा के पैसों की बंदरबांट की जाती है। बाढ़ प्रभावित इलाके के कई गांवों के लोगों को अभी तक कोई मदद भी नहीं पहुंची है। 

अजय राय ने कहा कि प्रशासन को पहले से जानकारी रहती है कि गंगा के जलस्तर में वृद्धि से किन-किन गांवों में खतरा उत्पन्न हो सकता है, फिर भी कोई अग्रिम और ठोस तैयारी नहीं होती। नुकसान हो जाने के बाद राहत और मुआवज़ा देने के नाम पर खानापूरी की जाती है। उन्होंने इसे सरकारी लापरवाही का उदाहरण बताया।

उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि, "बाढ़ पीड़ितों को मदद देने की बजाय जनप्रतिनिधि बाढ़ग्रस्त इलाकों में जाकर सेल्फी खिंचवाने और रस्मी सामग्री बांटकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं।"

Flood Affected

अजय राय ने सरकार से सवाल किया कि यदि हर साल जलस्तर बढ़ने से क्षति होती है तो अब तक स्थायी समाधान क्यों नहीं निकाला गया? उन्होंने कहा कि बाढ़ से निपटने के लिए केवल आपातकालीन व्यवस्था नहीं, बल्कि स्थायी और दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता है।

उन्होंने प्रदेश सरकार के प्रभारी मंत्री संजय गौड़ पर भी सवाल उठाए और कहा कि जब वे खुद सरकार की ओर से चंदौली के प्रभारी हैं, तो बारिश से पहले उन्होंने जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ कोई रणनीतिक बैठक क्यों नहीं की? यह दर्शाता है कि सरकार की ओर से तैयारी सिर्फ़ कागजों तक सीमित है।

अजय राय ने इस अवसर पर हिंदी साहित्यकार शिवप्रसाद सिंह की रचना "कर्मनाशा की हार" का हवाला देते हुए कहा कि आज के हालात उसी रचना की पीड़ा की पुनरावृत्ति हैं। यह सिर्फ़ साहित्य नहीं, बल्कि बाढ़ पीड़ितों की मौजूदा स्थिति का जीवन्त चित्रण है।

उन्होंने आपदा में मुनाफा उठाने की मानसिकता पर भी चिंता जताई और मांग की कि जिन लोगों के घर, खेती, और आजीविका को बाढ़ से नुकसान हुआ है, उन्हें बिना देरी के समुचित मुआवजा दिया जाए। साथ ही बाढ़ रोकने के लिए तटबंधों की मजबूती, ड्रेनेज सिस्टम, और जल निकासी की स्थायी व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।

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