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मनरेगा में काम नहीं मिलने से परेशान रहे मजदूर, पूर्वांचल में चंदौली भी मिल रही है शिकायतें

मनरेगा योजना के तहत जॉब कार्ड धारकों को प्रति वर्ष 100 दिन का रोजगार देना अनिवार्य है। काम के बदले मजदूरों को 219 से 222 रुपये की दर से भुगतान निर्धारित है।
 

पूर्वांचल के 1372 ग्राम पंचायतों में अप्रैल–मई में नहीं चला कोई कार्य

चंदौली के 160 गांवों में नहीं मिला कोई काम

मनरेगा को लेकर मजदूरों की अपनी अलग शिकायत

चंदौली जिले में नए वित्तीय वर्ष 2025–26 के शुरूआती दो महीनों में मनरेगा के तहत काम की मांग तो रही लेकिन चंदौली के साथ पूर्वांचल के दस जिलों की 1372 ग्राम पंचायतों में पंजीकृत जॉब कार्ड धारकों को एक भी दिन का काम नहीं मिल सका। अप्रैल और मई माह में काम नहीं मिलने के कारण हजारों मजदूर खाली बैठे रहे। शासन स्तर से निर्धारित 100 दिन रोजगार देने की योजना को स्थानीय स्तर पर गंभीरता से नहीं लिया गया।

इन दो महीनों में वाराणसी मंडल, आजमगढ़ मंडल और विंध्याचल मंडल के कुल 9801 ग्राम पंचायतों का मूल्यांकन किया गया, जिसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। चंदौली जिले की 734 ग्राम पंचायतों में से 160 पंचायतों में मनरेगा मजदूरों को कोई काम नहीं मिला। वहीं वाराणसी जिले ने सराहनीय प्रदर्शन करते हुए 690 गांवों में से केवल छह गांवों को छोड़ सभी में मनरेगा कार्य संचालित किया। इसके उलट बलिया जिले की 940 ग्राम पंचायतों में से 310 पंचायतों ने मजदूरों को एक भी दिन काम नहीं दिया।

जिलेवार विवरण और स्थिति इस प्रकार है 
वाराणसी: 690 में से सिर्फ 6 पंचायतों में काम नहीं,चंदौली : 734 में से 160 पंचायतों में काम नहीं, गाजीपुर : 1238 में से 220 पंचायतों में काम नहीं, जौनपुर : 1753 में से 162 पंचायतों में काम नहीं, मिर्जापुर : 809 में से 117 पंचायतों में काम नहीं,भदोही : 546 में से 49 पंचायतों में काम नहीं,सोनभद्र : 621 में से 17 पंचायतों में काम नहीं,आजमगढ़ : 1838 में से 301 पंचायतों में काम नहीं,मऊ : 632 में से 30 पंचायतों में काम नहीं,बलिया : 940 में से 310 पंचायतों में काम नहीं  मिले हैं 


काम कराने में जिलों की रैंकिंग

काम देने में सर्वाधिक सक्रियता वाराणसी जिले में रही जिसके बाद सोनभद्र, मऊ, भदोही और मिर्जापुर क्रमशः दूसरे से पांचवें स्थान पर रहे। चंदौली छठवें, जौनपुर सातवें, गाजीपुर आठवें, आजमगढ़ नौवें और बलिया दसवें स्थान पर रहा।

मजदूरों ने जताई नाराजगी

ग्रामीण मजदूरों का कहना है कि अप्रैल से जून तक का समय खेतीबारी के लिए खाली रहता है। इस दौरान मनरेगा के तहत अधिक काम की अपेक्षा होती है। लेकिन इस वर्ष बड़ी संख्या में पंचायतों में काम शुरू ही नहीं किया गया। मजदूरों का कहना है कि गर्मी के दिनों में सड़क निर्माण, खड़ंजा, नाली सफाई, चकरोड मरम्मत, पौधरोपण के लिए गड्ढा खुदाई जैसे कार्य आमतौर पर चलते हैं, लेकिन इस बार योजनाएं कागजों में ही सीमित रहीं।

योजनागत लापरवाही का परिणाम

मनरेगा योजना के तहत जॉब कार्ड धारकों को प्रति वर्ष 100 दिन का रोजगार देना अनिवार्य है। काम के बदले मजदूरों को 219 से 222 रुपये की दर से भुगतान निर्धारित है। लेकिन प्रशासनिक लापरवाही और निगरानी की कमी के कारण हजारों मजदूरों को रोजगार नहीं मिल सका जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका का संकट गहराया है।

प्रशासनिक पहल की दरकार

मनरेगा के बेहतर संचालन और मजदूरों को समय पर रोजगार देने के लिए ग्राम पंचायत सचिवों, रोजगार सेवकों व संबंधित विभागीय अधिकारियों की सक्रियता जरूरी है। शासन की मंशा के अनुरूप रोजगार सृजन तभी संभव है जब जमीनी स्तर पर योजनाओं को पूरी पारदर्शिता और गति के साथ लागू किया जाए।

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