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संयुक्त किसान मोर्चा करेगा 9 जुलाई को हड़ताल, ये हैं मांगें

प्रीपेड स्मार्ट मीटर परियोजना को एसकेएम ने सीधी लूट करार दिया है। हर उपभोक्ता को 8 से 10 हजार रुपये तक खर्च कर मीटर लगवाना होगा, जिसका जीवनकाल 7-8 साल का ही होगा।
 

बिजली के निजीकरण के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा का आंदोलन

9 जुलाई को देशव्यापी हड़ताल का ऐलान

जनता की जेब पर डाका और किसानों की आजीविका पर संकट का आरोप

उत्तर प्रदेश में बिजली क्षेत्र के निजीकरण के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने आंदोलन तेज कर दिया है। 22 जून 2025 को लखनऊ में हुए संयुक्त सम्मेलन में सैकड़ों किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया और पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के खिलाफ निर्णायक संघर्ष का संकल्प लिया।

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संयुक्त किसान मोर्चा  ने प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मांग की है कि बिजली के निजीकरण को तत्काल वापस लिया जाए, जिससे आम जनता को निजी कंपनियों की लूट से बचाया जा सके। मोर्चा ने कहा कि एनडीए सरकार देशभर में सार्वजनिक सेवाओं को निजी हाथों में सौंप रही है, जिससे कृषि, श्रमिक वर्ग और उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ रहा है।

एसकेएम की उत्तर प्रदेश राज्य समन्वय समिति के निर्णय के तहत 24 जून को सभी जिलों में प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन सौंपा गया। किसान संगठनों ने दो टूक कहा कि अगर यह निजीकरण नहीं रोका गया, तो इसका व्यापक असर किसानों की सिंचाई लागत और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। उदाहरण स्वरूप, बिना क्रॉस-सब्सिडी के 7.5 एचपी के पंपसेट के लिए किसानों को 10,000 रुपये मासिक बिजली बिल चुकाना होगा, जो असहनीय है।

एसकेएम ने यह भी बताया कि बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 को पहले वापस लेने का वादा किया गया था, लेकिन केंद्र सरकार ने विश्वासघात करते हुए इसे फिर से संसद में पेश किया। इस विधेयक से निजी कंपनियों को वितरण के लिए बिना किसी निवेश के लाइसेंस मिल जाएगा, और आम उपभोक्ताओं को महंगी बिजली खरीदनी पड़ेगी।

प्रीपेड स्मार्ट मीटर परियोजना को एसकेएम ने सीधी लूट करार दिया है। हर उपभोक्ता को 8 से 10 हजार रुपये तक खर्च कर मीटर लगवाना होगा, जिसका जीवनकाल 7-8 साल का ही होगा। इससे देशभर के 26 करोड़ उपभोक्ताओं की जेब से करीब 2.60 लाख करोड़ रुपये निकल जाएंगे।

एसकेएम ने ऐलान किया है कि 9 जुलाई 2025 को अखिल भारतीय आम हड़ताल के तहत बिजली निजीकरण के खिलाफ तहसील स्तर पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए जाएंगे और हर स्तर पर सिविल अवज्ञा आंदोलन खड़ा किया जाएगा। यह आंदोलन अब केवल किसानों का नहीं, बल्कि हर उपभोक्ता और नागरिक के हितों से जुड़ा मुद्दा बन गया है।

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