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सकलडीहा कस्बे के मूर्तिकार विद्या की देवी को दे रहे हैं अंतिम रूप, यह है उनका दर्द

चंदौली जिले के सकलडीहा बाजार में तकरीबन 50 वर्षों से मूर्ति का कार्य करते आ रहे लगभग 50 छोटे बड़े परिवार हैं, जो हर धार्मिक पर्व पर अपनी कला के जरिए जीविकोपार्जन करने की कोशिश करते हैं।
 

कब मिलेगा मूर्तिकारों को सरकारी सुविधाओं व योजनाओं का लाभ

कहीं लुप्त न हो जाए कलाकारी
 

चंदौली जिले के सकलडीहा बाजार में तकरीबन 50 वर्षों से मूर्ति का कार्य करते आ रहे लगभग 50 छोटे बड़े परिवार हैं, जो हर धार्मिक पर्व पर अपनी कला के जरिए जीविकोपार्जन करने की कोशिश करते हैं। इनके पास सबसे बड़ी कला देवी देवताओं की मूर्तियों को बनाने की है। 

कस्बे के मूर्तिकार मुन्ना प्रजापति का कहना है कि लगभग छोटे बड़े मिलाकर कुल 50 परिवार 50 वर्षों से इस कार्य को कर रहे हैं। मूर्तियों को देवी और देवताओं के रूप में निखारने के लिए दिन रात अथक परिश्रम परिवार के सभी छोटे-बड़े सदस्य मिलकर करते हैं। एक मूर्ति बनाने में तकरीबन 3 से 4 दिन लगता है। वहीं एक मूर्ति को 500 से लेकर 3000 रुपए तक बिकती है। 

Saraswati Puja 2022 Sakaldiha Bazar

कलाकार ने कहा कि इस महंगाई के जमाने में इतनी कड़ी परिश्रम के बाद लगने वाली लागत के अलावा बहुत मामूली मुनाफा प्राप्त होता है। जिससे सभी लोग अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। यहाँ की मूर्तियों को बक्सर, जमानिया, गाजीपुर तक के उपासक ले जाते हैं। 

कलाकारों का कहना है कि वैसे तो सरकार तमाम तरह की घोषणाएं करती है लेकिन सरकार द्वारा किसी भी योजनाओं का लाभ इन लोगों के कार्य के लिए आज तक नहीं मिल पाया है। यहां तक की मूर्तियों को बनाने के लिए मिट्टी भी खरीद कर लाते हैं, तब मूर्तियों को बना पाते हैं। 

Saraswati Puja 2022 Sakaldiha Bazar

बताते चलें कि इस तकनीकी युग में जो इनके रोजमर्रा का काम हुआ करता था। कुल्हड़ और दिया वह भी बंद हो गया, क्योंकि अब इनका रूप कागज और थर्माकोल ने ले लिया, जिस कारण से जो दैनिक आमदनी थी वह बंद हो गई। अब सिर्फ जीने खाने के लिए इन देवी देवताओं की मूर्तियों का ही सहारा रहता है।

मूर्तियों के निर्माण के लिए न इन के पास घर है ना ही कहीं कोई छांव है। सभी लोग प्लास्टिक की तिरपाल लगाकर मूर्तियों की सुरक्षा करते हैं। अगर इसी तरह चलता रहा तो आने वाले समय में यह मूर्तिकार अपनी इस कला को छोड़कर किसी और रोजगार में लग जाएंगे।

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