'नीले से पीला' कोडवर्ड से कोडीन सिरप का काला खेल : 10 गुना दाम पर बांग्लादेश भेजते थे खेप, ऐसे सफेद होता था काला धन
वाराणसी और चंदौली में फैले कोडीन कफ सिरप तस्करी के एक बड़े सिंडिकेट का भंडाफोड़ हुआ है। 'नीले से पीला' कोडवर्ड के जरिए करोड़ों की दवा तस्करी, हवाला और गोल्ड नेटवर्क का यह खेल 76 बोगस कंपनियों के जरिए संचालित हो रहा था।
वाराणसी में 2 करोड़ की कफ सिरप बरामदगी से खुला राज
सिंडिकेट ने बनाई थीं 76 फर्जी कंपनियां और बोगस फर्म
'नीले से पीला' था सिरप और सोने का सांकेतिक कोडवर्ड
ई-वे बिल से बचने के लिए 50 हजार से कम की बिलिंग
चार प्रमुख फर्मों में मिला 34 करोड़ रुपये का हवाला ट्रांजेक्शन
चंदौली-वाराणसी और आसपास के जिलों में नशीली कफ सिरप की तस्करी करने वाले एक ऐसे गिरोह का पर्दाफाश हुआ है, जिसकी कार्यप्रणाली किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है। वाराणसी पुलिस की जांच में सामने आया है कि यह सिंडिकेट न केवल दवाओं की अवैध तस्करी कर रहा था, बल्कि सरकार की आंखों में धूल झोंकने के लिए उसने बोगस कंपनियों, हवाला और गोल्ड नेटवर्क का एक जटिल जाल बुन रखा था। इस पूरे खेल का खुलासा तब हुआ जब 19 नवंबर को रोहनिया के भदवर में एक जिम के नीचे बने गोदाम से 2 करोड़ रुपये की कोडीन युक्त कफ सिरप बरामद की गई।

'नीले से पीला': तस्करी का गुप्त कोडवर्ड
पुलिस जांच में एक चौंकाने वाला खुलासा 'कोडवर्ड' को लेकर हुआ है। यह सिंडिकेट कफ सिरप और उससे होने वाली कमाई को छिपाने के लिए 'नीले का पीला' कोडवर्ड का इस्तेमाल करता था। यहाँ 'नीला' शब्द कोडीन युक्त कफ सिरप के लिए इस्तेमाल होता था, जबकि 'पीला' शब्द उस मुनाफे से खरीदे गए सोने (Gold) के लिए प्रयोग किया जाता था। तस्करी के जरिए कमाए गए करोड़ों रुपयों को गोल्ड नेटवर्क और हवाला के जरिए ठिकाने लगाया जाता था, ताकि जांच एजेंसियों की पकड़ से बचा जा सके।

76 बोगस कंपनियां और 34 करोड़ का ट्रांजेक्शन
एडीसीपी के नेतृत्व में हुई जांच में अब तक कुल 76 फर्जी कंपनियों का पता चला है। इनमें से 35 कंपनियां रोहनिया और 41 कंपनियां सारनाथ क्षेत्र में कागजों पर संचालित हो रही थीं। पुलिस के अनुसार, इन फर्मों के ठिकानों पर जब छापेमारी की गई, तो वहां न तो कोई गोदाम मिला और न ही खरीद-बिक्री का कोई वास्तविक रिकॉर्ड। इसके बावजूद, इन फर्मों के बैंक खातों में रोजाना 10 से 20 लाख रुपये का लेन-देन हो रहा था। जांच में पाया गया कि केवल चार फर्मों—सिंह मेडिकोज, अलउकबा, एसपी फार्मा और पीडी फार्मा—के जरिए ही 34 करोड़ रुपये का हवाला कारोबार किया गया।
ई-वे बिल से बचने की शातिर तरकीब
गिरोह के सदस्य जीएसटी और ई-वे बिल के डिजिटल रिकॉर्ड से बचने के लिए बेहद शातिर तरीका अपनाते थे। शुभम जायसवाल और लोकेश अग्रवाल जैसे आरोपी माल की बिलिंग जानबूझकर 50 हजार रुपये से कम रखते थे। नियमतः 50 हजार से अधिक के माल के परिवहन के लिए ई-वे बिल अनिवार्य होता है, लेकिन छोटी बिलिंग दिखाकर ये लोग बिना किसी डिजिटल रिकॉर्ड के करोड़ों का माल एक राज्य से दूसरे राज्य भेज देते थे। बाद में, जब सिंडिकेट बड़ा हुआ, तो इन्होंने ई-वे बिल में भी बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा शुरू कर दिया।
डमी संचालक और तीन लेयर का मनी लॉन्ड्रिंग नेटवर्क
यह सिंडिकेट डमी संचालकों के नाम पर फर्म खोलता था। गरीब और भोले-भाले लोगों के आधार कार्ड, पैन कार्ड और बैंक खातों का इस्तेमाल किया जाता था, जिसके बदले उन्हें सालाना करीब 2 लाख रुपये दिए जाते थे। असली नियंत्रण लोकेश अग्रवाल और शुभम जायसवाल के पास रहता था। कफ सिरप को बिहार, बंगाल और पड़ोसी देश बांग्लादेश में 7 से 10 गुना अधिक कीमत पर बेचा जाता था। इस काली कमाई को तीन से चार अलग-अलग लेयर की फर्मों के माध्यम से घुमाया जाता था। आरटीजीएस (RTGS), एनईएफटी (NEFT) और कैश के जरिए पैसा अंततः 'शैली ट्रेडर्स' और 'न्यू वृद्धि' जैसी मुख्य फर्मों के खातों में पहुंचकर पूरी तरह से 'सफेद' कर दिया जाता था।
जीएसटी और बैंक खातों से खुली पोल
पुलिस ने जब गाजियाबाद की आरएस फार्मा के संचालकों और उनके बैंक खातों की जांच की, तो कड़ियां जुड़ती गईं। चंदौली स्थित 'सिंह मेडिकोज' के जीएसटी नंबर से जुड़े बैंक ऑफ महाराष्ट्र के करंट अकाउंट ने पुलिस को चौंका दिया, जहां 10 करोड़ का लेन-देन दर्ज था। इसी तरह 'अलउकबा' एजेंसी में 17 करोड़ के ट्रांजेक्शन का पता चला। वर्तमान में पुलिस ने आरोपियों के खातों से 1 करोड़ रुपये फ्रीज करा दिए हैं और हवाला नेटवर्क की इस पूरी चेन को ध्वस्त करने के लिए आगे की जांच जारी है।
Tags
चंदौली जिले की खबरों को सबसे पहले पढ़ने और जानने के लिए चंदौली समाचार के टेलीग्राम से जुड़े।*







