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योगी सरकार देने जा रही है एक और झटका : बिजली दरों में बढ़ोतरी की तैयारी, आज से शुरू होने जा रही है सुनवाई

राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने बिजली कंपनियों पर पुराने टैरिफ आदेशों के अनुपालन में लापरवाही का आरोप लगाते हुए दरों में 40 प्रतिशत तक कटौती की मांग की है।
 

कंपनियों ने 30% बढ़ोतरी का रखा प्रस्ताव

उपभोक्ताओं ने जताया विरोध

अलग-अलग वितरण कंपनियों से सुनवाई के बाद फाइनल होगा रेट

उत्तर प्रदेश में बिजली दरों को लेकर नई प्रक्रिया की शुरुआत बुधवार से हो गई है। नियामक आयोग ने प्रदेश की विभिन्न बिजली कंपनियों के टैरिफ प्रस्तावों पर उपभोक्ताओं और संगठनों की आपत्तियां सुनने के लिए खुली जनसुनवाई शुरू कर दी है। सबसे पहले कानपुर में केस्को के प्रस्ताव पर सुनवाई की गई। बिजली कंपनियों की ओर से उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड ने करीब 30 प्रतिशत दर वृद्धि का प्रस्ताव आयोग के समक्ष रखा है। कंपनियों का तर्क है कि बिजली उत्पादन, ट्रांसमिशन और अन्य लागत में बढ़ोत्तरी के चलते दरें बढ़ाना जरूरी हो गया है।

हालांकि उपभोक्ता संगठनों ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने बिजली कंपनियों पर पुराने टैरिफ आदेशों के अनुपालन में लापरवाही का आरोप लगाते हुए दरों में 40 प्रतिशत तक कटौती की मांग की है। परिषद का कहना है कि कंपनियों पर पहले से ही उपभोक्ताओं का बकाया है और सुविधाएं भी संतोषजनक नहीं हैं, ऐसे में दर बढ़ाना पूरी तरह अनुचित है।

जनसुनवाई की प्रक्रिया जुलाई माह भर चलेगी। आयोग ने अलग-अलग वितरण कंपनियों की सुनवाई के लिए तारीखें तय की हैं। 11 जुलाई को वाराणसी में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम, 15 जुलाई को आगरा में दक्षिणांचल, 16 जुलाई को ग्रेटर नोएडा में नोएडा पावर कंपनी, 17 जुलाई को मेरठ में पश्चिमांचल और 21 जुलाई को लखनऊ में मध्यांचल विद्युत वितरण निगम की सुनवाई होगी।

इस बीच यह भी सामने आया है कि आयोग के कई पुराने आदेश अब तक लागू नहीं हो सके हैं। सिंगल पॉइंट कनेक्शन के उपभोक्ताओं की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए पिछले साल पोर्टल बनाने का आदेश दिया गया था, लेकिन आज तक उस पर कोई काम नहीं हुआ। कई अधिकारी तो आदेश की जानकारी से ही इनकार कर रहे हैं।

सूत्रों की मानें तो जुलाई के अंत तक सभी सुनवाई पूरी कर ली जाएंगी और सितंबर में नई बिजली दरें लागू कर दी जाएंगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आयोग कंपनियों की मांगों को तरजीह देता है या उपभोक्ताओं की आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए राहत भरे फैसले लेता है।

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