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धान की नर्सरी के लिए न मिले पानी तो सीधे बोएं धान, जीरो ट्रिल से मिलेगी भरपूर पैदावार

जिले में नहरों में पानी की भारी कमी और बिजली की अनियमित आपूर्ति से परेशान होकर पारंपरिक रोपाई विधि छोड़ दी है। इसके बजाय उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर जीरो ट्रिल तकनीक से सीधी बोआई की विधि अपनाई है।
 

 नहरों में पानी की कमी से जूझते किसानों के लिए राहत

धान की फसल के लिए अपनाएं सीधी बोआई

जीरो ट्रिल तकनीक से 88 एकड़ में हो रही धान की खेती

चंदौली जिले में बरहनी ब्लॉक के किसानों ने कुछ नया करने का सोच लिया है। हर साल सिंचाई के पानी की किल्लत से जूझ रहे किसानों ने गेंहू की तरह धान की सीधी बुआई करने का फॉर्मूला आजमाना शुरू कर दिया है। इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर जीरो ट्रिल तकनीकि का सहारा लिया जा रहा है, जो चंदौली के किसानों के लिए लाभदायक हो सकती है। 

जिले में नहरों में पानी की भारी कमी और बिजली की अनियमित आपूर्ति से परेशान होकर पारंपरिक रोपाई विधि छोड़ दी है। इसके बजाय उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर जीरो ट्रिल तकनीक से सीधी बोआई की विधि अपनाई है। इस नवाचार से क्षेत्र के 12 गांवों के किसानों ने 88 एकड़ खेत में धान की सीधी बोआई की है, जिससे पूरे इलाके में इस पहल की चर्चा हो रही है।

बताते चलें कि नरवन, बरहनी, अमड़ा, चखनिया, डैना, बसंतपुर, खुरहट, दरौली, सिकता, कम्हरिया और कोरमी जैसे गांवों के किसानों का कहना है कि वे पिछले कई वर्षों से पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। लागत में बढ़ोत्तरी और उत्पादन में गिरावट ने उन्हें नई तकनीकों की ओर रुख करने को मजबूर कर दिया।

कम लागत में होगी बेहतर उपज
जीरो ट्रिल विधि से धान की सीधी बोआई करने से खेत की जुताई और रोपाई का खर्च बच जाता है, साथ ही 30 से 40 फीसदी पानी की भी बचत होती है। हालांकि इस तकनीक में खर-पतवार की समस्या अधिक रहती है, लेकिन किसान 20-22 दिन के भीतर खरपतवार नाशक दवाओं के छिड़काव से इसे नियंत्रित कर रहे हैं।

कृषि विभाग भी सक्रिय
जिला कृषि अधिकारी विनोद यादव ने बताया कि अभियान के तहत किसानों को जीरो ट्रिल तकनीक, दलहन, सब्जी की खेती और पशुपालन के उन्नत तरीकों की जानकारी दी जा रही है। 13 जून तक चलने वाले इस अभियान में चंदौली, चकिया और सकलडीहा तहसीलों के गांवों में कृषि, पशुपालन और संबंधित विभागों की टीमें किसानों को जागरूक कर रही हैं।

कृषि क्षेत्र में इस तरह के बदलाव से उम्मीद की जा रही है कि कम संसाधनों में भी बेहतर उत्पादन संभव हो सकेगा और किसानों की आय में वृद्धि होगी। किसानों को इसे बिना किसी भय के अपनाना चाहिए। एक बार उपयोग करने से सारी चिंताएं दूर हो जाएंगी। वैज्ञानिकों ने इस विधि को परखने के बाद अपनाने की सलाह दी है।

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