करो या मरो के नारे से गूंजा था इलाका, आजादी के पहले आजाद था धानापुर
कामता प्रसाद विद्यार्थी कर रहे थे नेतृत्व
बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह भी सेनानियों को करते थे प्रेरित
सर पर कफन बांधकर देश के लिए छोड़ दिया था घरबार
चंदौली जनपद के धानापुर का कांड इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है। जिसके मुख्य नायक के रूप में सेनानी कामता प्रसाद विद्यार्थी का नाम लिया जाता है, जब 1942 में गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा की थी तो बनारस जिले के धानापुरा क्षेत्र के शहीदगांव के निवासी कामता प्रसाद विद्यार्थी उस समय काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे। गांधी जी के करो और मरो के आंदोलन का इस कदर असर हुआ कि उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़कर अंग्रेजों को बाहर भगाने के लिए सर पर कफन बांधकर निकल गए।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के प्रपौत्र आशीष विद्यार्थी ने बताया कि उसे समय की स्थितियों को बयां करने में रूह कांप जाती है। दादाजी बताते थे कि जब गांधी जी ने आंदोलन की घोषणा की तो बीएचयू की पढ़ाई छोड़कर और अपने क्षेत्र के युवा बुजुर्ग पुरुष महिला सबको जागरूक करने के लिए गुपचुप तरीके से वह निकल गए थे। जिसका परिणाम रहा कि 12 अगस्त से ही आंदोलन प्रारंभ हो गया और अंग्रेजों का खौफ लोगों को डरा नहीं सका।
कहा जा रहा था कि देश की सरकारी इमारत पर अंग्रेजी हुकूमत के हुक्मरानों का पहरा बड़ा हो गया और भारत मां को आजाद करने वाले मतवाले जगह-जगह अपनी आहुति देने के लिए तैयार हो गए। इसका परिणाम रहा की 12 अगस्त से लेकर और 30 अगस्त तक 1942 में ही बनारस वर्तमान समय में बनारस जनपद का धानापुर, सैयदराजा व सकलडीहा का हिस्सा अंग्रेजों से कुछ दिनों के लिए आजाद होने लगा। उसके लिए कई लोगों को अपनी जान भी गवाई पड़ी। कुछ लोगों का तो नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो पाया, लेकिन कुछ ऐसे रहे जिनका नाम गुमनाम रहा और वह भारत मां को आजाद करने के लिए अपना बलिदान दे दिया।
उस समय स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ने वाले का सहयोग कादिराबाद के बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह के द्वारा किया जाता था और नवयुवकों का मार्गदर्शन कर उनको अपने आप को सुरक्षित रखकर लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा था। जहां अंग्रेज जगह-जगह इस आंदोलन को दबाने के लिए क्रूरता पूर्वक व्यवहार कर रहे थे।
वहीं अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए कामता प्रसाद विद्यार्थी गांव-गांव घूम कर युवकों की एक बड़ी फौज बनाने में जीते थे, जिसका परिणाम रहा कि जहां 16 अगस्त को धानापुर थाने पर लोगों ने अपनी आहुति देकर तिरंगा फहरा दिया और 1947 से पहले इसे आजाद क्षेत्र घोषित करवा दिया। ये इलाका कई दिनों के लिए 1942 में ही आजाद रहा। सकलडीहा रेलवे स्टेशन पर रेलवे ट्रैक उखाड़ने के साथ साथ सैयदराजा में तिरंगा फहराने और धीना में भी आंदोलन किया गया था।
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