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श्री लक्षुब्रम्ह वार्षिकोत्सव : 'सुग्रीव की तरह समर्पित बनें, बालि जैसा अहंकार विनाशकारी है', संत वेंकटेश प्रपन्नाचार्य की अमृतवाणी

चहनिया के लक्ष्मणगढ़ में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में गया के पीठाधीश्वर संत वेंकटेश प्रपन्नाचार्य ने भक्तों को धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि समर्पण और अटूट भक्ति से भगवान को भी अपने वश में किया जा सकता है।

 
 

सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की सीख

श्री लक्षुब्रम्ह बाबा मंदिर में भव्य कथा

भगवान के प्रति समर्पण की शक्ति

गया पीठाधीश्वर का आध्यात्मिक उद्बोधन

चंदौली जनपद के चहनिया क्षेत्र अंतर्गत लक्ष्मणगढ़ स्थित श्री लक्षुब्रम्ह बाबा मंदिर परिसर में सोमवार को श्री लक्षुब्रम्ह वार्षिकोत्सव के पावन अवसर पर श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया। कथा के मुख्य वक्ता गया के पीठाधीश्वर संत वेंकटेश प्रपन्नाचार्य ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि इस संसार में सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं है। उन्होंने स्वीकार किया कि धर्म के मार्ग पर चलना अत्यंत कठिन है और इसमें पग-पग पर परीक्षाएं होती हैं, लेकिन एक सच्चा भक्त कभी परेशानियों से घबराता नहीं है। धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति ही अंततः विजय प्राप्त करता है।

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समर्पण से ही मिलता है ईश्वरीय सानिध्य
संत वेंकटेश प्रपन्नाचार्य ने रामचरितमानस के प्रसंगों का उल्लेख करते हुए बताया कि भगवान से बड़ा कोई दयालु नहीं है। उन्होंने सुग्रीव और बालि का उदाहरण देते हुए कहा कि भगवान ने सुग्रीव की मदद इसलिए की क्योंकि वे पूरी तरह से प्रभु के प्रति समर्पित थे। दूसरी ओर, बालि बल, वैभव और शक्ति से संपन्न था, लेकिन धर्म, भक्ति और भगवान में उसकी कोई रुचि नहीं थी। संत जी ने भक्तों को प्रेरित करते हुए कहा कि हमारी भक्ति और प्रेम ऐसा होना चाहिए कि हमें भगवान के पास जाने की आवश्यकता न पड़े, बल्कि भगवान स्वयं भक्त के वश में होकर उसके पास आएं।

भक्ति और चरण रज का महत्व
श्रीमद् भागवत कथा के दौरान संत ने शनकादिक ऋषियों और महाराज पृथु के संवाद पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि जब महाराज पृथु से पूछा गया कि उन्हें क्या चाहिए, तो उन्होंने केवल भगवान की चरण रज (धूल) मांगी। इसका गूढ़ अर्थ यह है कि जब चरणों का सानिध्य मिल जाता है, तो भगवान की कथा और भक्ति स्वतः ही प्राप्त हो जाती है। ईश्वर की भक्ति कभी अधूरी नहीं जाती; वह देर-सवेर अपना फल अवश्य देती है और भक्त को मोक्ष के मार्ग पर ले जाती है।

श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब
इस आध्यात्मिक महोत्सव में लक्ष्मणगढ़ और आसपास के गाँवों से सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु उमड़े। कथा पंडाल में गूँजते भजनों और जयकारों से वातावरण भक्तिमय हो गया। कार्यक्रम के सफल आयोजन में राजेंद्र मिश्रा, गणेश सिंह, अमरनाथ दूबे, ध्रुव मिश्रा, चमन पाण्डेय, विंध्याचल तिवारी और रामकिशुन यादव सहित मंदिर समिति के अनेक सदस्यों और भक्तों ने सक्रिय सहभागिता की। वार्षिकोत्सव के दौरान मंदिर परिसर को भव्य तरीके से सजाया गया था, जहाँ लोगों ने बाबा लक्षुब्रम्ह का आशीर्वाद भी प्राप्त किया।

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