विधानसभा चुनाव स्पेशल : अबकी बार होगी सुशील सिंह के बूथ मैनेजमेंट की असली परीक्षा, सपा से सीधी टक्कर
विधानसभा चुनाव स्पेशल न्यूज
अबकी बार होगी बूथ मैनेजमेंट की परीक्षा
सुशील सिंह की सपा से सीधी टक्कर
चंदौली जिले के राजनेताओं में सुशील सिंह का एक अलग स्थान है और माना जाता है कि वह जहां कहीं से भी चुनाव लड़ेंगे, चुनाव जीते ही जाएंगे। इसीलिए बार-बार उनके विधानसभा क्षेत्र को बदलने और किसी और जगह से चुनाव लड़ने की चर्चा भी हो जाया करती है, लेकिन सुशील सिंह अपनी पहली पसंद सैयदराजा विधानसभा को बता रहे हैं और वह 2022 का चुनाव सैयदराजा विधानसभा सीट से ही लड़ना चाहते हैं।
अगर विधायक सुशील सिंह सैयदराजा विधानसभा से अबकी बार चुनाव लड़ते हैं तो उनको अपने बूथ मैनेजमेंट की स्किल एक बार फिर साबित करनी होगी और सत्ता विरोधी लहर को मात देते हुए अपने काम के दम पर जीत का परचम लहराना होगा। वैसे कहा जाता है कि विधायक सुशील सिंह का बूथ मैनेजमेंट और चुनाव लड़ने का तरीका अन्य राजनेताओं से काफी अलग है। वह चुनाव लड़ना और जीतना बहुत अच्छी तरीके से जानते हैं। उनका बूथ मैनेजमेंट और कार्यकर्ताओं उसे सीधे टच में रहने की कला अन्य नेताओं से अलग करती है। इसीलिए वह पहला चुनाव भले ही मामूली अंतर से हार गए हों, लेकिन उसके बाद वह अजेय बने रहे।
2022 के विधानसभा चुनाव में उनको अबकी बार फिर समाजवादी पार्टी के टिकट पर मनोज कुमार सिंह डब्लू से मुकाबला होने की उम्मीद जताई जा रही है। भले ही तत्कालीन विधायक मनोज कुमार सिंह डब्लू 2017 के चुनाव में कुछ कारणों से हार गए हैं, लेकिन अबकी बार वह किसी तरह की चूक न करते हुए चुनाव जीतने के लिए अपना पूरा दमखम झोंक रहे हैं। वह भी अपना तगड़ा बूथ मैनेजमेंट कर रहे हैं, ताकि हर एक बूथ की निगरानी करते हुए सुशील सिंह को कड़ी टक्कर दी जा सके। ऐसी हालत में दोनों नेताओं के बूथ मैनेजमेंट और चुनावी रणनीति बनाने की क्षमता का प्रदर्शन अति चुनाव में होने जा रहा है सैयदराजा विधानसभा में जीत हार यह तय करेगी कौन बेहतर बूथ मैनेजमेंट करता है और कौन बेहतर चुनावी रणनीति बनाने वाला राजनेता है।

ऐसे बढ़ती रही चंदौली जिले में राजनीतिक हनक
सुशील सिंह 2002 में पहली बार धानापुर विधानसभा से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। इस चुनाव में सपा के प्रभुनारायण सिंह यादव से मामूली अतंर से चुनाव हार गए थे। तब सपा के प्रभुनारायण सिंह यादव को 47,410 वोट व सुशील सिंह को 47,384 वोट मिले थे। तब प्रदेश में त्रिशंकु विधानसभा बनी थी और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा था। बाद में भाजपा ने बसपा को समर्थन दिया तो 3 मई 2002 को मायावती तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन अगस्त 2003 में ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। बाद में मुलायम सिंह ने बसपा की टूट के बाद सपा में आए विधायकों के समर्थन से सरकार बना ली थी। 29 अगस्त 2003 को मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने व 2007 के चुनाव तक अपनी सरकार चलायी।
सुशील सिंह इसके बाद 2007 में पहली बार विधायक बने थे। उस चुनाव में सुशील सिंह को 72,642 वोट मिले व प्रभुनारायण सिंह यादव को केवल 55,403 वोट मिले। सुशील सिंह विधायक बने तो उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के बाद बसपा सरकार बनी। अप्रैल-मई 2007 में विधानसभा के चुनाव में जेल से चुनाव लड़े व विधानसभा में पहुंचे थे। इसमें बहुजन समाज पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी बसपा प्रमुख मायावती मुख्यमंत्री बनीं थी।
2012 में बसपा ने इनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को देखते हुए टिकट काट दिया तो परिसीमन के बाद बनी 381, सकलडीहा विधानसभा में वह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का इंतजाम किया और अपने बेहतर चुनावी मैनेजमेंट व बूथवार पकड़ के दम पर सारे दलों के चुनावी समीकरण को फेल करते हुए 'अंगूठी' के सहारे विधायक बने थे। इस चुनाव में सुशील सिंह को पिछले चुनाव से कम वोट मिले लेकिन त्रिकोणात्मक लड़ाई में जीत सुशील सिंह की हुयी। इसमें सुशील सिंह को 66,509 वोट मिले, जबकि प्रभुनारायण सिंह यादव को 59,661 को मिले। इस समय उत्तर प्रदेश विधानसभा की सोलहवीं विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी को हराते हुए पूर्ण बहुमत प्राप्त किया। चुनावों के बाद अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने सरकार बनायी। तब वह निर्दल विधायक होने के कारण अपनी विधानसभा में कोई खास काम नहीं करवा पाए थे।
इसी दौरान ऐसा माना जा रहा था कि वह 2014 के लोकसभा चुनाव लड़ेंगे, लेकिन कुछ राजनीतिक हालात ऐसे बदले के लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने भाजपा का दामन थामा और 2017 में जब विधानसभा का चुनाव हुआ तो उन्हें भाजपा के टिकट पर सैयदराजा से चुनाव लड़ने के लिए कहा गया। वह निर्दल चुनाव जीतकर सपा में शामिल हुए तत्कालीन विधायक मनोज सिंह डब्लू व विनीत सिंह जैसे पहले से चुनावी कर रहे दिग्गजों को करारी हार देते हुए लगातार तीसरी बार विधायक बनकर हैट्रिक लगाने का काम किया। इस दौरान सुशील सिंह को 78,869 वोट मिले थे, जबकि दूसरे स्थान पर श्याम नरायण उर्फ विनीत सिंह को 64,375 वोट मिल पाए थे। वहीं सपा के तत्कालीन विधायक मात्र 44, 832 वोटों तक सिमट गए थे और तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था।

बार-बार सीट बदलने की उड़ाते हैं अफवाह
विरोधियों के पास कोई मुद्दा नहीं है तो इस तरह की अफवाह उड़ाते रहते हैं और वह पहली बार धानापुर से मामूली अंतर से हारे तो दूसरी बार वहीं से भारी बहुमत से बसपा के टिकट पर विधायक बने। तीसरी बार परिसीमन में धानापुर सीट खत्म होने व नयी सैयदराजा व सकलडीहा विधानसभा बनने के बाद जब बसपा ने टिकट नहीं दिया तो वह पारिवारिक कारणों से सकलडीहा को अपनी कर्मभूमि बनाकर चुनाव लड़ने की तैयारी की और भारी बहुमत से जीत हासिल की। फिर भाजपा ज्वाइन करने के बाद पार्टी के निर्देश पर सैयदराजा विधानसभा से टिकट मिला तो वह सैयदराजा में भी अपनी जीत दर्ज करायी। अब पार्टी जहां से कहेगी वह चुनाव लड़कर जीत सकते हैं।
सैयदराजा ही है पहली पसंद, काम के दम पर जीत
चंदौली समाचार से बातचीत में सुशील सिंह ने कहा कि वह चंदौली जिले की सैयदराजा सीट से विधायक हैं और अपनी विधानसभा में पूरे कार्यकाल में काम किया है। सैयदराजा में मेडिकल कालेज के साथ साथ और कई काम हैं, जिनके दम पर वह चुनाव लड़ेंगे। इसलिए उनकी पहली पसंद सैयदराजा ही है, लेकिन उनके चुनाव लड़ने का फैसला पार्टी को करना है। जहां से पार्टी कहेगी वह चुनाव लड़ लेंगे।
चंदौली जिले के वरिष्ठ पत्रकार कृपा शंकर सिंह दादा का कहना है कि सुशील सिंह का चुनावी मैनेजमेंट अन्य लोगों से बेहतर होता है और वह अपनी जीत के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं। पहला चुनाव भले ही नजदीकी अंतर से हार गए हों, लेकिन उसके बाद उन्होंने कोई चुनाव नहीं हारा। वह जीत की हैट्रिक लगाने वाले चंद राजनेताओं में से एक हैं।
अब देखना होगा कि विधायक सुशील सिंह अबकी कैसे अपने चुनावी मैनेजमेंट का जलवा दिखाते हैं और किस तरह से लगातार चौथी बार विधानसभा में जाकर एक नया रिकॉर्ड बनाते हैं।
Tags
चंदौली जिले की खबरों को सबसे पहले पढ़ने और जानने के लिए चंदौली समाचार के टेलीग्राम से जुड़े।*






