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90 किसान काट रहे दफ्तरों के चक्कर, 60 साल बाद भी नहीं मिला भूमि का मालिकाना हक

मूसाखाड़ बांध के निर्माण के दौरान विस्थापित किसानों को आवंटित भूमि का मालिकाना हक 60 साल के बाद भी नहीं मिल पाया। अभी भी 90 किसान दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं।
 

मूसाखाड़ बांध के निर्माण के दौरान हुए थे विस्थापित

किसानों को नहीं मिला आवंटित भूमि का मालिकाना हक

60 साल के बाद भी लगा रहे हैं चक्कर

 

चंदौली जिले में मूसाखाड़ बांध के निर्माण के दौरान विस्थापित किसानों को आवंटित भूमि का मालिकाना हक 60 साल के बाद भी नहीं मिल पाया। अभी भी 90 किसान दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। जो जमीन किसानों को दी गई थी, वह आज भी वन भूमि के रूप में दर्ज है।


आपको बता दें कि वर्ष 1965 में मूसाखाड़ बांध के निर्माण के लिए 3220.357 एकड़ वन भूमि शासनादेश के तहत महुअरिया बीजबनवा एवं तेंदुई गांव की ली गई थी। इसमें से बांध के निर्माण के बाद जिन किसानों की भूमिधरी बांध के जलाशय में गई थी। उन्हें इसी जमीन में से 290.7795 एकड़ में वन भूमि दी गई थी। शासनादेश में वन भूमिका स्वरूप बदलने पर रोक लगाई गई थी। इसलिए किसानों को मिला वन भूमि आज भी वन भूमि ही दर्ज है। उसे राजस्व भूमि में नहीं बदला जा सका। 


हालांकि वन भूमि को राजस्व भूमि में बदलने की कवायद में वन विभाग राजस्व विभाग और सिंचाई विभाग लगातार लगा हुआ है। किसानों को मिलने वाली सरकारी योजनाओं किसान क्रेडिट कार्ड, किसान सम्मान निधि, फसल बीमा और अन्य कृषि ऋण नहीं मिल रहा है। इससे किसानों की स्थिति दयनीय बनी हुई है।


बांध के निर्माण के दौरान जारी शासनादेश में भूमि का स्वरूप न बदलने का प्रावधान किया गया था। इसलिए अब भूमि का स्वरूप बदलने के लिए राज्य सरकार के साथ ही केंद्र सरकार की भी अनुमति जरूरी है।

वन अधिनियम 1927 के प्रावधानों के अनुरूप यह कार्य किया गया था और अब वन संरक्षण अधिनियम 1980 लागू हो चुका है। इसलिए जिलाधिकारी ने इसे आधार बनाकर किसानों को लाभ देने के उद्देश्य से जनहित में अपर मुख्य सचिव पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन को पत्र लिखा है। हालांकि अभी तक इस पर क्या प्रगति हुई है इसका इंतजार किसानों को है।


क्षेत्र के नामवर यादव, जीवनलाल, कोल राम, अवध यादव, भागवत मौर्य, हीरा विश्वकर्मा, नारायण विश्वकर्मा, कैलाश आदि किसानों का कहना है कि हमारे पूर्वजों ने भूमि के बदले भूमि की मांग 1965 में की थी। इसलिए राजस्व भूमि के बदले हमें राजस्व भूमि दी जाए जिससे हमें भी अन्य किसानों की तरह सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके।

इस सम्बंध में  रामनगर डीएएफओ दिलीप श्रीवास्तव का कहना है कि वर्ष 1965 के शासनादेश को बदलने के लिए वन विभाग और सिंचाई विभाग के अधिकारियों की कई बैठकें हो चुकी हैं। 26 अक्टूबर की बैठक के बाद डीएम ने अपर मुख्य सचिव पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन को पत्र लिखा था।

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