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योगी जी..मंहगाई के दौर में 4 रुपए 97 पैसे में कैसे भरेगा नौनिहालों का पेट, लगातार बढ़ रही है मंहगाई

सरकार ने पिछले दो साल से कंवर्जन कास्ट में कोई भी बढ़ोत्तरी नहीं की है, जबकि मंहगाई काफी तेजी से बढ़ रही है।
 

मेन्यू के हिसाब से भोजन देने में आ रही परेशानी

मंहगाई से परेशान हैं ग्राम प्रधान

दो साल से नहीं बढी कंवर्जन कास्ट

चंदौली जिले के ग्राम प्रधान व शिक्षक इस बाते के लिए परेशान हैं कि बढ़ती महंगाई के दौर में भी परिषदीय विद्यालयें में मध्याह्न भोजन के लिए सरकार के द्वारा निर्धारित कंवर्जन कास्ट में कैसे मानक के अनुरुप भोजना दिया जाय। सरकार ने पिछले दो साल से कंवर्जन कास्ट में कोई भी बढ़ोत्तरी नहीं की है, जबकि मंहगाई काफी तेजी से बढ़ रही है।

ग्राम प्रधानों का कहना है कि कोरोना काल के बाद से तेल, दाल, सब्जी, सोयाबीन सहित अन्य खाद्य सामाग्री के साथ ही गैस सिलेंडर में बेतहाशा वृद्धि हुई है। ऐसे में स्कूलों में एमडीएम संचालन में काफी मुश्किलें आ रही हैं। मानक के अनुरुप गुणवत्ता का खाना देना मुश्किल हो रहा है। सरकार को अगर इस योजना को इमानदारी से चलाना है तो कंवर्जन कास्ट को बढ़ाने के लिए सोचना चाहिए। नहीं तो बच्चों के साथ न्याय नहीं हो पाएगा। हर एक प्रधान का मानना है कि इस मानक से मध्याह्न भोजन की गुणवत्ता कैसे बेहतर होगी और बच्चों का पेट कैसे भरेगा। 

Conversion Coste School

फिलहाल जनपद के 1273 स्कूलों में मिड-डे मील योजना संचालित की जाती है। इसमें प्राथमिक विद्यालय, उच्च प्राथमिक विद्यालय और कम्पोजिट विद्यालयों के अलावा अन्य स्कूल शामिल हैं। इन स्कूलों में करीब 2 लाख 40 हजार 355 बच्चों को मध्याह्न भोजन मेन्यू के अनुसार परोसा जाता है। प्राथमिक विद्यालय के प्रत्येक नौनिहालों के भोजन की थाली पर शासन की ओर से चार रुपया 97 पैसा और उच्च प्राथमिक स्कूलों के बच्चों को सात रुपया 45 पैसा कंवर्जन कास्ट के रूप में खर्च किया जाता है। लेकिन पिछले दो साल से मिड-डे मील का कंवर्जन कास्ट नहीं बढ़ाया गया है। जबकि दो सालों में खाद्य तेल, दाल, सब्जी, सोयाबीन, दूध, फल, गैस सिलेंडर आदि के दामों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है। इसके चलते इस महंगाई के दौर में बच्चों के मध्याह्न भोजन की मिलने वाली थाली पर भी असर पड़ रहा है। 

परिषदीय विद्यालयों में मिड-डे मील योजना के तहत सप्ताहिक मिन्यू निर्धारित कर बच्चों को व्यंजन परोसा जाता है। इसमें सोमवार को रोटी-सब्जी जिसमें सोयाबीन अथवा दाल की बड़ी का प्रयोग एवं ताजा मौसमी फल, मंगलवार को चावल-दाल, बुधवार को व तहरी एवं उबला हुआ गर्म दूध, गुरुवार को रोटी-दाल, शुक्रवार को तहरी इसमें सोयाबीन की बड़ी अथवा मौसमी सब्जियों का प्रयोग और शनिवार को चावल-सोयाबीन युक्त सब्जी बच्चों को दिया जाता है। 

इसमें प्राथमिक के 100 बच्चों पर एक किलो और उच्च प्राथमिक के 100 बच्चों पर डेढ़ किलो सोयाबीन का प्रयोग होता है। लेकिन यह बच्चों की थाली में पर्याप्त नहीं हो पाता है। ऐसे में सरकार को इसके बारे में विचार करना चाहिए, ताकि बच्चों को पौस्टिक भोजन मिल सके और गुणवत्ता के साथ कोई समझौता न हो।

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