खेती के एक्सपर्ट बोले- चंदौली में क्रॉपिंग पैटर्न बदलने की जरूरत, अब दलहन एवं तिलहन उत्पादन पर भी दें जोर

सर्फेस सीडर मशीन से गेहूं की बुआई के कई फायदे
समय और पैसे की होगी बचत
पराली व खरपतवार की समस्या से बच जाएंगे किसान
आचार्य नरेंद्र कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र चंदौली पर दिनांक 9 अप्रैल 2025 पर डॉ. विक्रांत सिंह (ज्वाइंट डायरेक्टर, गेहूं विकास निदेशालय, भारत सरकार) ने भ्रमण किया एवं वैज्ञानिकों के साथ जनपद में लगाई जाने वाली फसलों के बारे में विस्तृत जानकारी ली। उन्होंने बताया कि चंदौली जनपद का क्रॉपिंग पैटर्न धान एवं गेहूं है, लेकिन आने वाला भविष्य हमें यह बताता है कि हम ज्यादा से ज्यादा दलहन एवं तिलहन उत्पादन की तरफ किसानों को प्रेरित करें, क्योंकि देश को अब दलहन एवं तिलहन उत्पादन में भी आत्मनिर्भर बनाना है।

इसलिए जनपद की भूमि व पारिस्थितिकी को देखते हुए दलहन एवं तिलहनी फसलों व प्रजातियों का चयन करें। उन्होंने भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की भावी योजनाओं के विषय में वैज्ञानिकों को विस्तार से बताया और उनके अनुरूप कार्य करने के लिए प्रेरित किया। साथ ही उन्होंने ने सलाह दी कि प्रक्षेत्र पर अच्छे बीज पौध एवं फलदार वृक्ष को तैयार कर किसानों में वितरित करें। प्रक्षेत्र पर सर्फेस सीडर मशीन से गेहूं की बुआई के प्रदर्शन के अवलोकन के दौरान पाया प्रक्षेत्र पर लगी हुई अन्य विधि से और सरफेस सीडर द्वारा बुवाई विधि की तुलना में दोनों गेहूं की फसलों में कोई अंतर नहीं है, बल्कि इस विधि से गेहूं की बुआई करने में खेत की तैयारी नहीं करनी पड़ती है। इससे समय और लागत दोनों की बचत होती है और किसानों को पराली की समस्या व खरपतवारों से निजात मिलती है ।

इस दौरान उन्होंने बताया की पराली खेत में सड़कर मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में सहायक होती है और पराली को जलाने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान और जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को कम किया जा सकता है। इस अवसर पर केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ नरेंद्र रघुवंशी, जिला कृषि अधिकारी श्री विनोद यादव, डॉ अभयदीप गौतम, श्री रितेश गंगवार, श्री मनीष सिंह, डॉ अमित सिंह, डॉ प्रतीक सिंह एवं श्री मनीष आजाद आदि उपस्थित रहे।
इस विधि से बुआई करने से पराली की समस्या से निजात मिलती है और पराली को जलाने से मुक्ति मिलती है और उसको खेत में ही बिछाकर कार्बनिक खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस विधि से नार्मल गेहूं की बुआई की अपेक्षा 10 से 15 दिन तक की बचत होती है। इस विधि से खरपतवार की समस्या से 80 से 90 प्रतिशत निजात मिलती है।
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