पहले पुनर्वास करो और फिर घर तोड़ो : भारतमाला परियोजना से प्रभावित ग्रामीणों की मांग हुयी तेज

रेवसां में लगातार जारी है अनिश्चितकालीन धरना
भारतमाला परियोजना को लेकर हो रहा है विरोध
मुआवजा व पुनर्वास से पहले मकान गिराने पर ग्रामीणों में भारी आक्रोश
SC/ST कर्मचारी संघ ने भी दिया आंदोलन को समर्थन
भारतमाला परियोजना के निर्माण कार्य को लेकर चंदौली जिले के रेवसा गांव में जारी अनिश्चितकालीन धरना रविवार को भी जारी रहा। ग्रामीणों की इस लड़ाई को अब और बल मिल रहा है। रेवसा बस्ती बचाओ संघर्ष समिति के आंदोलन को अखिल भारतीय अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति कर्मचारी कल्याण एसोसिएशन का भी समर्थन मिल गया है। आंदोलनकारियों की प्रमुख मांग है कि जब तक संपूर्ण मुआवजा और पुनर्वास की प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक किसी भी रिहायशी मकान को न तोड़ा जाए।

बिना मुआवजा तोड़े गए घर, फूटा आक्रोश
धरना दे रहे ग्रामीणों ने बताया कि भारतमाला परियोजना के तहत उनके गांव की जमीन अधिग्रहित की गई है, जिसमें कई परिवारों के मकान भी शामिल हैं। आरोप है कि प्रशासन ने मुआवजा दिए बिना कई मकान ढहा दिए, जिससे प्रभावित परिवारों के सामने भोजन, आश्रय और रोजी-रोटी की गंभीर समस्या खड़ी हो गई है।

गरीब परिवारों को मिल रही दोहरी मार
वक्ताओं ने कहा कि जिनके घर और ज़मीन अधिग्रहण की जद में हैं, वे पहले से ही गरीब तबके से आते हैं। अब जब उनके मकान तोड़े गए हैं, तो उनके पास न नया घर बनाने के पैसे हैं और न ही जमीन खरीदने की क्षमता। ऐसी स्थिति में पहले पुनर्वास और उचित मुआवजे की व्यवस्था की जानी चाहिए, फिर तोड़फोड़ की कार्रवाई हो।
धरने को मिल रहा व्यापक समर्थन
आंदोलनकारियों के समर्थन में महेंद्र कुमार, डॉ. रवि कुमार, विनोद कुमार, सरोज, जयप्रकाश, वंशराज, रामकृत, सुरेश अकेला जैसे प्रमुख लोग सामने आए हैं। इनका कहना है कि यह सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि गरीबों के अस्तित्व और अधिकार की लड़ाई है।
प्रशासन से की स्पष्ट नीति की मांग
संघर्ष समिति ने जिला प्रशासन से स्पष्ट पुनर्वास नीति लागू करने की मांग की है। उनका कहना है कि पुनर्वास योजना को सार्वजनिक किया जाए, विस्थापित परिवारों को अस्थायी आवास व राहत दी जाए और पुनर्वास स्थल तक सभी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
क्या कहता है आंदोलन:
"घर गिराने से पहले नया घर दीजिए, जमीन छीने से पहले जमीन का विकल्प दीजिए। नहीं तो यह आंदोलन केवल रुकने वाला नहीं, जिलेभर में फैल जाएगा।" – संघर्ष समिति सदस्य
अब देखना यह है कि प्रशासन इस आंदोलन को कितनी गंभीरता से लेता है और क्या भारतमाला परियोजना के नाम पर हो रहे विस्थापन को संवेदनशीलता के साथ सुलझाया जा सकेगा या फिर ग्रामीणों को अपने अधिकारों के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी।
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