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2027 के टिकट की आस में तन-मन-धन से जुटे हैं कई कांग्रेसी, 5 दिवसीय कार्यक्रम में कर रहे सहयोग

अबकी बार स्थानीय नेताओं को लगता है कि 2027 के विधानसभा चुनाव में पार्टी जरूर स्थानीय प्रतिनिधित्व को मौका देगी, तभी वे 5 दिवसीय कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जुटे हुए हैं।
 

1984 के बाद नहीं जीता कोई सांसद

1985 में 4 सीट जीतने वाली कांग्रेस जीत को तरसी

ये है कांग्रेस के खत्म होने के असली कारण

स्थानीय लोगों को किया जाने लगा है दरकिनार

चंदौली जिले में कांग्रेस सेवा दल का 5 दिवसीय कार्यक्रम स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है। इस दौरान कांग्रेस के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता अपना तन-मन-धन लगाकर कार्यक्रम को सफल बनाने में जुड़े हुए हैं, ताकि 2027 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की 4 दशक से खत्म हुयी पुरानी कोई प्रतिष्ठा को वापस लौटाया जा सके।

1985 में जीते थे चारों सीटें
आपको याद होगा कि 1984 के लोकसभा चुनाव में अंतिम संसद के रूप में श्रीमती चंद्रा त्रिपाठी चुनाव जीत कर लोकसभा में पहुंची थीं। उसके बाद से कांग्रेस पार्टी कभी चंदौली जिले से लोकसभा का चुनाव नहीं जीत सकती और ना ही उसकी पार्टी का कोई विधायक 1985 के बाद विधायक बनकर सदन में जा सका। साथ ही 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में चंदौली जिले की चारों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस पार्टी का कब्जा किया था। धानापुर से  राम जनम, चंदौली से  संकठा प्रसाद शास्त्री, चकिया से खरपत राम और मुगलसराय से रामचंद्र शर्मा  विधायक के रूप में विधानसभा में पहुंचे थे। इसके बाद चंदौली जिले का कोई भी विधायक कांग्रेस पार्टी के टिकट पर विधानसभा में नहीं जा सका।
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ये रहे हैं बदहाली के कारण
 ऐसी स्थिति के पीछे तमाम तरह के कारण बनाए जाते हैं, लेकिन सबसे प्रमुख कारण यह बताया जाता है कि पंडित कमलापति त्रिपाठी का परिवार जिले की सक्रिय राजनीति से दूर होता गया और  कांग्रेस पार्टी के आलाकमान ने चुनाव के समय टिकट बंटवारे को लेकर ईमानदारी नहीं बरती और कई बाहरी नेताओं को चंदौली जिले के कार्यकर्ताओं पर थोपा। साथ ही ऐसे नेताओं को टिकट दिया जो जमीनी स्तर पर कमजोर थे। ऐसा माना जाता है कि चुनाव के समय थोपे गए का चुनावी नेताओं के कारण कांग्रेस धीरे-धीरे जमीनी स्तर पर कमजोर हो गई और अपना जनाधार खोती चली गई। कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले चंदौली जनपद में पिछले 4 दशक से कोई मजबूत नेता उभर नहीं सका, जो राज्य स्तर या राष्ट्रीय स्तर पर जिले का प्रतिनिधित्व कर सके।
 
लोकसभा का हाल
 पिछले कुछ सालों में देखा जाए तो चंदौली लोकसभा सीट पर अक्सर बाहरी उम्मीदवारों को टिकट देकर चुनाव लड़ने की कोशिश की गई।  2014 के लोकसभा चुनाव में गोंडा जिले के रहने वाले और राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले तरुण पटेल को टिकट दे दिया गया। वह चुनाव हार जाने के बाद चंदौली जिले में दोबारा झांकने तक नहीं आए।   इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन के तहत कांग्रेस पार्टी ने बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी सुकन्या कुशवाहा को लोकसभा का चुनाव लड़ा दिया। वह भी चुनाव हारने के बाद कभी चंदौली जनपद में पार्टी के लोगों की सुध लेने नहीं पहुंची। वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में यह सीट सपा के खाते में चली गयी।

विधानसभा का हाल
 वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो यहां सकलडीहा विधानसभा के टिकट बंटवारे को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस पार्टी ने किसी भी मेहनती और ईमानदार छवि के कार्यकर्ता को टिकट नहीं दिया, बल्कि ऐसे लोगों को टिकट लगा दिया, जो जमीनी स्तर पर कभी मेहनत ही नहीं कर रहे थे।

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 2022 के विधानसभा चुनाव में मुगलसराय विधानसभा से तैयारी कर रहे सतीश बिंद का टिकट काटते हुए उनकी पत्नी को सैयदराजा विधानसभा से चुनाव लड़ा दिया गया, जहां वह चुनाव प्रचार में भी सक्रिय नहीं हो पायीं। कभी भी घर से न निकलने वाली महिला को सीधे विधानसभा में चुनाव उतार देने के नियम को कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं ने स्वीकार नहीं किया। लेकिन आलाकमान के निर्णय के तहत से स्वीकार करना पड़ा और पार्टी बुरी तरह से हार गई।

 वहीं मुगलसराय विधानसभा में कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी के 3 बार के विधायक और बहुजन समाज पार्टी से घूम कर कांग्रेस पार्टी में आए छब्बू पटेल को टिकट दे दिया है। वह चुनाव हारने के बाद टिकट दिलाने वाले राजेश मिश्रा के साथ ही भारतीय जनता पार्टी में वापस चले गए।

 वहीं चकिया विधानसभा की बात की जाए तो वहां खंड विकास अधिकारी के रूप में काम करने वाले राम सुमेर राम को टिकट देकर चुनाव लड़ाया गया, जो कि मूल रूप से बलिया के रहने वाले थे और अपना मकान बनाकर वाराणसी जिले में रहते थे। उनका चकिया के वोटरों से कोई लेना-देना नहीं था। वह भी बुरी तरह से हार गए।

ऐसी स्थिति में कई बार देखा गया कि कांग्रेस पार्टी का टिकट बंटवारा करने वाला नेता और आलाकमान ऐसे लोगों को चंदौली जिले पर थोपता रहा जो जमीन से ना तो जुड़े थे और न ही स्थानीय कार्यकर्ताओं की पसंद थे। ऐसी स्थिति में कांग्रेस पार्टी धीरे-धीरे कमजोर होती गयी।

2027 की आस में लगे हैं नेता
अबकी बार स्थानीय नेताओं को लगता है कि 2027 के विधानसभा चुनाव में पार्टी जरूर स्थानीय प्रतिनिधित्व को मौका देगी, तभी वे 5 दिवसीय कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जुटे हुए हैं, लेकिन वहीं कई नेताओं का मानना है कि आलाकमान के सलाहकारों का क्या भरोसा, कहीं फिर न पुरानी कहानी दोहरा दी जाए।

इसीलिए कहा जा रहा है कि अगर एक बार फिर आलाकमान में बाहरी और जबरन थोपे गए नेताओं पर दाव खेला तो जिले से कांग्रेस का बचाकुचा जनाधार भी खत्म हो जाएगा। ऐसे कार्यक्रम के बाद एक बार फिर कार्यकर्ता उदास होंगे और इसके बाद इसका असर आगे वाले कार्यक्रमों और चुनावों पर पड़ेगा।

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