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डॉक्टर आनंद त्रिपाठी के तेवर देख बैकफुट पर आने को मजबूर हुयीं गीता श्रीवास्तव, देने लगीं सफाई

चंदौली के केजी नंदा हॉस्पिटल में डॉक्टर और महिला आयोग की सदस्य के बीच विवाद के बाद मरीजों का आक्रोश बढ़ा। प्रशासन के हस्तक्षेप से मामला शांत हुआ और आयोग सदस्य ने सफाई दी।

 
 

डॉक्टर आनंद त्रिपाठी से महिला आयोग का विवाद

मरीजों के आक्रोश से बढ़ने लगा था तनाव

महिला आयोग सदस्या गीता ने दी सफाई

सदर कोतवाली पर देर रात तक हुआ प्रदर्शन

पुलिस प्रशासन ने हस्तक्षेप कर मामले को कराया शांत 

चंदौली जिले के जिला मुख्यालय स्थित केजी नंदा हॉस्पिटल में बुधवार की रात अचानक विवाद की स्थिति पैदा हो गई। महिला आयोग की सदस्य सुनीता श्रीवास्तव और अस्पताल के डायरेक्टर व स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर आनंद प्रकाश त्रिपाठी के बीच हुई तीखी बातचीत ने माहौल को तनावपूर्ण बना दिया।

 डॉक्टर और मरीजों का आक्रोश
डॉक्टर आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने आरोप लगाया कि महिला आयोग की सदस्य ने उनके साथ अभद्र भाषा का प्रयोग किया और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। उन्होंने यह भी कहा कि आयोग सदस्य ने उनके भाई पर मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दी। इस कथित व्यवहार से डॉक्टर और वहां मौजूद मरीज आक्रोशित हो गए। देखते ही देखते बड़ी संख्या में मरीज और समर्थक सदर कोतवाली पहुंच गए और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।

 पुलिस और प्रशासन की भूमिका
सदर थाने पर घंटों तक हंगामा चलता रहा। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस और प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ी। अंततः प्रशासन ने दोनों पक्षों को समझा-बुझाकर मामला शांत कराया। इस हस्तक्षेप के बाद माहौल सामान्य हुआ और विवाद थम गया।

 महिला आयोग सदस्य की सफाई
घटना के बाद महिला आयोग की सदस्य सुनीता श्रीवास्तव ने मीडिया से बातचीत में कहा कि उनका डॉक्टर से कोई व्यक्तिगत वाद-विवाद नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी मंशा किसी को परेशान करने की नहीं थी। उनका कहना था कि यदि महिलाओं की ओर से कोई शिकायत सामने नहीं आती है, तो वह किसी प्रकार की कार्रवाई की मांग नहीं करेंगी।

मरीजों की समस्याओं पर चर्चा
महिला आयोग सदस्य ने यह भी कहा कि वह अस्पताल में महिलाओं की समस्याएं सुनने और उनका हाल जानने के लिए गई थीं। उन्होंने स्वीकार किया कि मरीज परेशान होकर डॉक्टर के पास जाते हैं और अस्पताल की उपलब्ध व्यवस्थाओं में ही अपना इलाज कराते हैं।

विवाद से उठे सवाल
फिलहाल प्रशासन के हस्तक्षेप से मामला शांत हो गया है। हालांकि इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि स्वास्थ्य सेवाओं और शिकायत निवारण के दौरान संवाद की भाषा और संयम कितना आवश्यक है। डॉक्टर और आयोग सदस्य के बीच हुई इस घटना ने स्पष्ट कर दिया कि संवेदनशील मुद्दों पर संवाद करते समय संतुलन और संयम बनाए रखना बेहद जरूरी है।

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