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मैली गंगा को साफ नहीं होने देना चाह रहे हैं अफसर, चंदौली में 276 करोड़ का STP निर्माण 8 साल से अटका

उत्तर प्रदेश जल निगम और गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई भले ही अपने काम पूरे होने का दावा कर रहे हों, लेकिन सच्चाई यह है कि 6.88 प्रतिशत जमीन की रजिस्ट्री अभी भी बाकी है।
 

चंदौली प्रशासन का दोहरा रवैया जारी

सड़क के लिए जबरन लेते हैं जमीन

पर गंगा को बचाने वाले एसटीपी प्रोजेक्ट में अधिकारी फेल

मुगलसराय इलाके में 8 साल से अटका STP निर्माण

गंगा में सीधे बह रही है इन इलाकों की गंदगी

बिहार से सटे उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में मैली गंगा को निर्मल बनाने की सभी कोशिशें धरी की धरी रह गई हैं। मुगलसराय (पीडीडीयू नगर) और आसपास के रेलवे कॉलोनियों का मल-जल आज भी सीधे गंगा नदी में गिर रहा है, जिससे प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है। इस गंभीर समस्या को दूर करने के लिए प्रस्तावित सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का निर्माण पिछले आठ वर्षों से अटका हुआ है। एसटीपी के लिए कुल 276 करोड़ रुपये की योजना बनाई गई थी, लेकिन यह आज भी केवल फाइलों तक ही सीमित है।

जमीन बनी 276 करोड़ की योजना में रोड़ा
एसटीपी निर्माण में देरी का मुख्य कारण जमीन की रजिस्ट्री प्रक्रिया पूरी न होना है। रौना गांव में 2 हेक्टेयर भूमि पर 37 एमएलडी क्षमता वाला यह एसटीपी बनना है। कागजी कार्रवाई 2019 में शुरू हुई थी, लेकिन जमीन अधिग्रहण से जुड़ी अनसुलझी समस्याओं के कारण निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया।

उत्तर प्रदेश जल निगम और गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई भले ही अपने काम पूरे होने का दावा कर रहे हों, लेकिन सच्चाई यह है कि 6.88 प्रतिशत जमीन की रजिस्ट्री अभी भी बाकी है। इस छोटी सी अड़चन ने 276 करोड़ रुपये की पूरी योजना को रोक रखा है।

अधिकारी क्यों नहीं ले रहे दिलचस्पी?
यह विडंबना है कि चंदौली प्रशासन, जो सड़क और अन्य योजनाओं के लिए जोर-जबरदस्ती से भी जमीनें लेने के लिए जाना जाता है, वह गंगा को निर्मल बनाने वाले इस अत्यंत महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में पूरी तरह से दिलचस्पी नहीं ले रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह एसटीपी योजना जिला प्रशासन की प्राथमिकता सूची में नहीं है। वर्तमान में, पीडीडीयू नगर के 25 वार्डों और रेलवे कॉलोनियों का करीब 30 एमएलडी गंदा पानी नालों के माध्यम से सीधे गंगा में गिर रहा है। नगर पालिका नालों पर टैप लगाकर कचरा निकालने का प्रयास तो कर रही है, लेकिन यह मल-जल के सीधे प्रवाह को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है।

मुआवजे की मांग और रजिस्ट्री में देरी
एसटीपी के लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया 2020 में तब शुरू हुई जब तहसील प्रशासन ने रौना गांव में जमीन चिह्नित की।

किसानों का विरोध: शुरुआत में 86 काश्तकारों की भूमि का मुआवजा देने की प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन किसानों ने सर्किल रेट के पांच गुना मुआवजे की मांग को लेकर विरोध किया।

सहमति और बाकी काम: काफी समझौते के बाद अधिकांश किसानों को मना लिया गया। वर्तमान में 78 काश्तकारों की 93.12 प्रतिशत जमीन की रजिस्ट्री पूरी हो चुकी है।

अब केवल गांव के आठ किसान ही बचे हैं, जो विभिन्न शहरों में रहते हैं और उन्होंने अभी तक अपनी जमीन का बैनामा नहीं कराया है।

अब त्वरित कार्रवाई की जरूरत
प्रशासन ने इन आठ किसानों से बातचीत की है और उन्हें नोटिस जारी करके रजिस्ट्री कराने के लिए कहा है। अपर जिलाधिकारी राजेश कुमार ने बताया कि जैसे ही यह जमीन रजिस्ट्री पूरी होगी, उप्र जल निगम ग्रामीण इकाई को पत्र लिखकर एसटीपी का निर्माण कार्य तुरंत शुरू कराया जाएगा।

एसटीपी निर्माण में यह देरी गंगा नदी के प्रदूषण को लगातार बढ़ा रही है और जल-जीवन पर गंभीर प्रभाव डाल रही है। प्रशासन और जल निगम को अब त्वरित कार्रवाई करनी होगी ताकि गंगा का संरक्षण और स्थानीय निवासियों की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके, और 276 करोड़ रुपये की योजना फाइलों से निकलकर जमीन पर उतर सके।

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