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सायंकालीन अदालतें लगाकर खत्म किया जाएगा पेंडिंग मुकदमों का बोझ, अधिवक्ताओं से मांगा गया सहयोग ​​​​​​​

केंद्रीय कानून मंत्रालय सूबे में भी सायंकालीन अदालत शुरू करने की योजना बनाई जा रही है। देशभर की अदालतों में लंबित मामलों के बोझ को कम करने के उद्देश्य से यह योजना प्रस्तावित है।
 

जिलों में अब लग सकेंगी सायंकालीन अदालतें

रिटायर हुए जिला न्यायाधीशों को अनुबंध के आधार पर नियुक्त करने का प्रस्ताव

शाम 5 से रात 9 बजे तक चलेगी अदालतों की कार्यवाही

 

केंद्रीय कानून मंत्रालय सूबे में भी सायंकालीन अदालत शुरू करने की योजना बनाई जा रही है। देशभर की अदालतों में लंबित मामलों के बोझ को कम करने के उद्देश्य से यह योजना प्रस्तावित है। मौजूदा अदालत परिसरों में ही ऐसी अदालतें काम करेंगी। इन अदालतों में मामूली अपराध के मामले, संपत्ति विवाद और चेक विवाद के मामलों समेत ऐसी सुनवाई होगी, जिनमें अधिकतम तीन साल की सजा का प्रविधान है। 


इलाहाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने प्रदेश के सभी जिला जजों को पत्र भेजकर अधिवक्ताओं की राय मांगी है। गुजरात में 2006 से ही ऐसी अदालतों का प्रचलन है। मंत्रालय ने इस संबंध में एक विवरण तैयार कर सभी राज्यों को भेजा है।


 बताया गया कि सायंकालीन अदालतों में पिछले तीन वर्षों के भीतर रिटायर हुए जिला न्यायाधीशों को अनुबंध के आधार पर नियुक्त करने का प्रस्ताव है। ये अदालतें शाम पांच से रात नौ बजे तक चलेंगी। इससे पहले के समय में नियमित अदालतें अपना काम करती रहेंगी। बाद में उन्हीं अदालतों की सुविधाओं का प्रयोग सायंकालीन अदालतों के लिए किया जाएगा। प्रस्तावित योजना के तहत, सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीशों और सेवानिवृत्त अदालती कर्मचारियों को तीन साल की अवधि के लिए अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया जाएगा। इस काम के बदले उन्हें देय भत्तों के साथ - साथ उनके अंतिम वेतन की 50 प्रतिशत राशि बतौर पारिश्रमिक मिलेगी। 

अधिवक्ताओं की मुहर लगनी बाकी 


प्रस्तावित अदालतें तीन साल से अधिक समय से लंबित छोटे आपराधिक मामलों की सुनवाई कर सकेंगी, जिसमें तीन साल तक के कारावास के दंड का प्रविधान है। इसके बाद छह साल तक के कारावास वाले मामले शामिल किए जाएंगे। हालांकि, इस प्रस्ताव पर अधिवक्ताओं की मुहर लगनी बाकी है।

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