जिले का पहला ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टलMovie prime

धान की सीधी बुवाई पर केंद्रित किसान गोष्ठी, वैज्ञानिकों ने दिए तकनीकी सुझाव

IRRI के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मलिक ने कहा कि धान की सीधी बुवाई तकनीक किसानों के लिए एक क्रांतिकारी विकल्प बनकर उभर रही है। यह पद्धति न सिर्फ श्रम और पानी की बचत करती है, बल्कि उत्पादन में भी बढ़ोतरी संभव बनाती है।
 

120 किसानों ने कार्यशाला में लिया भाग

फार्ड फाउंडेशन और अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान का संयुक्त प्रयास

धान की सीधी बुवाई पर किसानों का प्रशिक्षण

चन्दौली जिले के धनापुर में कृषि एवं ग्रामीण विकास के क्षेत्र में सतत कार्यरत फाउंडेशन फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (फार्ड फाउंडेशन) एवं अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को माया मंगलम वाटिका में एक दिवसीय किसान गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस तकनीकी गोष्ठी में धान की सीधी बुवाई विषय पर किसानों को प्रशिक्षित किया गया। कार्यक्रम में चंदौली के विभिन्न गांवों से आए 120 किसानों ने भाग लिया।

Farmers seminar focused

बताते चलें कि गोष्ठी का शुभारंभ शिवनंदम फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी के निदेशक रमेश सिंह के संयोजन में दीप प्रज्वलन एवं अतिथियों के स्वागत के साथ हुआ।

वैज्ञानिकों ने बताया कि कैसे सीधी बुवाई से बढ़ेगी आय घटेगा खर्च

IRRI के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मलिक ने कहा कि धान की सीधी बुवाई तकनीक किसानों के लिए एक क्रांतिकारी विकल्प बनकर उभर रही है। यह पद्धति न सिर्फ श्रम और पानी की बचत करती है, बल्कि उत्पादन में भी बढ़ोतरी संभव बनाती है।

पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वी.पी. सिंह ने बताया कि पारंपरिक रोपाई की तुलना में सीधी बुवाई कम समय में कम लागत में और कम मेहनत से की जा सकती है।

Farmers seminar focused

वाराणसी स्थित IRRI के वैज्ञानिक डॉ. सुनील ने बताया कि इस विधि में किसान नर्सरी की लागत मजदूरी व खेत की जुताई की अतिरिक्त लागत से बच सकते हैं। उन्होंने बीज की मात्रा के बारे में जानकारी दी कि मोटे दाने वाली किस्म के लिए प्रति एकड़ 12-14 किलोग्राम मध्यम दानों के लिए 10-12 किलोग्राम महीन किस्मों के लिए 8-10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

उन्होंने 1.2 से 1.5 इंच की गहराई में बीज ड्रिल करने की सलाह दी और जीरो टिल सीड ड्रिल तकनीक के उपयोग और खरपतवार नियंत्रण के उपाय भी बताए।


पूर्व कुलपति डॉ. पंजाब सिंह ने दिया बाजार से जुड़ाव का मंत्र 

बीएचयू के पूर्व कुलपति व रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय झांसी के कुलाधिपति डॉ. पंजाब सिंह ने धान की सीधी बुवाई व राइस ट्रांसप्लांटर की उपयोगिता पर चर्चा करते हुए कहा कि किसानों को परंपरागत खेती के साथ मशरूम उत्पादन, मछली पालन जैसे वैकल्पिक उपायों की ओर भी ध्यान देना चाहिए। साथ ही उन्होंने मार्केट लिंकेज को मजबूत कर उचित मूल्य प्राप्त करने की रणनीति अपनाने पर बल दिया।

गोष्ठी का संचालन और समापन

कार्यक्रम का संचालन बीएचयू के डॉ. राजेश सिंह ने किया। उन्होंने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए किसानों को प्रोत्साहित किया।

समापन अवसर पर फार्ड फाउंडेशन के ट्रस्टी एवं ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट ऑफिसर डॉ. उमेश सिंह ने सभी प्रतिभागी किसानों का धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा कि वैज्ञानिकों के सुझावों को अपनाकर किसान अपनी उपज और आमदनी दोनों में इजाफा कर सकते हैं।

इस कार्यक्रम में रमेश सिंह ओमप्रकाश सिंह, सुजीत सिंह, पिंटू शर्मा, रामजी, मृत्युंजय सिंह, श्रीराम सिंह, जय प्रकाश, सुभाष राय, मनोज मौर्य, राम कवल यादव, महेंद्र कुमार (VDO), शैलेन्द्र पांडे, आलोक पांडे और अनिरुद्ध दुबे समेत बड़ी संख्या में कृषक मौजूद रहे।

चंदौली जिले की खबरों को सबसे पहले पढ़ने और जानने के लिए चंदौली समाचार के टेलीग्राम से जुड़े।*