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नौगढ़ में सैंपल लेने वाले अफसर का कारनामा, वसूली की दहशत से बंद कर देते हैं दुकान

चंदौली जिले के तहसील नौगढ़ में बुधवार को जो दृश्य देखने को मिला, वह किसी आम दिन का नहीं था। दोपहर एक बजे से शाम 4 बजे तक कस्बा नौगढ़ समेत मझगाई, मझगांवां और तिवारीपुर की अधिकांश दुकानें पूरी तरह बंद रहीं।
 

जानिए क्या है नौगढ़ का पूरा मामला

सैंपल वाली टीम की आहट कांप उठते हैं दुकानदार

चार घंटे तक बंद रहे पूरे इलाके के बाजार

वसूली पर व्यापार मंडल बने रहते हैं मूकदर्शक

सवालों के घेरे में संगठन की भूमिका

चंदौली जिले में फूड सिक्योरिटी डिपार्टमेंट के द्वारा की जा रही छापेमारी की कार्यवाही और खाद्य पदार्थों की जांच का मामला हमेशा संदिग्ध रहता है या तो इनकी कार्यवाही खानापूर्ति वाली होती है या कार्यवाही करने की सूचना लीक हो जाया करती है, जिस दुकानदार अलर्ट हो जाते हैं और केवल एक-दो दुकानों की ही जांच पड़ताल की कार्रवाई होती है। ऐसा देखा जाता है कि अभियान चलाकर सैंपल लेकर जांच के नाम पर खानापूर्ति करती है और कुछ खानापूर्ति वाली कार्यवाही का कोई बड़ा असर जनपद में नहीं दिखाई देता है। इसीलिए नौगढ़ इलाके में बुधवार को की गई कार्यवाही का भी कुछ खास असर नहीं दिखाई दे रहा है।
चंदौली जिले के तहसील नौगढ़ में बुधवार को जो दृश्य देखने को मिला, वह किसी आम दिन का नहीं था। दोपहर एक बजे से शाम 4 बजे तक कस्बा नौगढ़ समेत मझगाई, मझगांवां और तिवारीपुर की अधिकांश दुकानें पूरी तरह बंद रहीं। व्यापारी अपने प्रतिष्ठानों से दूर रहे। वजह ऐसी है कि बस यही कि "सैंपल लेने वाले अधिकारी" इलाके में आ गए हैं।
अब सवाल ये है — सिर्फ सैंपल लेने की खबर से दुकानदार दुकानें बंद कर दें, तो जांच कैसे होगी और दुकानों की जांच का और कौन सा तरीका है, जिस पर डिपार्टमेंट काम करेगा। ऐसे सरकारी निरीक्षण से क्या फायदा है..और कार्रवाई के नाम पर ऐसी खानापूर्ति क्यों होती है..?

अफवाह नहीं, डर का होता है माहौल  
शाम को स्पष्ट हुआ कि तीन गाड़ियों से आए अधिकारी दरअसल निर्माण विभाग से  थे, जो सड़क निर्माण की गुणवत्ता जांच रहे थे। लेकिन तब तक बाजार में डर की हवा बह चुकी थी। कई दुकानदारों ने दबी जुबान से बताया कि जब खाद्य विभाग के अधिकारी "सैंपल" लेने आते हैं, तो बिना पूरी प्रक्रिया बताए, सीधे चालान, जुर्माना, धमकी और कभी-कभी अपमानजनक व्यवहार तक की नौबत आती है।

व्यापार मंडल पर भी उठे सवाल
सबसे बड़ी हैरानी यह रही कि व्यापार मंडल के पदाधिकारी खुद भी चुप रहे। ना किसी ने आकर बाजार में सफाई दी, ना किसी ने व्यापारियों का हौसला बढ़ाया। सवाल उठना लाजिमी है कि जब व्यापारियों के मन में इतना डर बैठ गया है तो व्यापार मंडल का अस्तित्व ही किसलिए ?

 अब शासन-प्रशासन को जाननी चाहिए अपनी हकीकत और देना होगा इन सवालों का भी जवाब....
1. क्या खाद्य निरीक्षण अब उत्पीड़न का पर्याय बन चुका है ?
2. निरीक्षण का तरीका इतना डरावना क्यों है कि बाजार बंद हो जाए ?
3. क्या छोटे दुकानदारों को जानबूझकर निशाना बनाया जाता है ?
4. क्या व्यापार मंडल सिर्फ रस्मी संगठन बनकर रह गया है ?
5. क्या प्रशासन व्यापारियों को भरोसा दिलाने के बजाय उन्हें खामोश करने की दिशा में चल रहा है ?

यह खबर महज अफवाह पर बाजार बंद होने की नहीं, बल्कि उस टूटते भरोसे की कहानी है, जिसमें व्यापारी खुद को असुरक्षित मानते हैं और प्रशासन से नहीं, निरीक्षण टीम से डरते हैं। अब जरूरत है ईमानदार सवाल पूछने और सटीक जवाब मांगने की, क्योंकि सैंपल का मतलब डर नहीं, जांच होना चाहिए।

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