कई इलाकों में कागजों में चल रही हॉट कुक्ड योजना, सभी जगहों पर बच्चों को नहीं मिल रहा गर्म भोजन
गर्म भोजन योजना सिर्फ कागजों पर लागू
तीन से छह साल के बच्चों को नहीं मिल रहा पका-पकाया खाना
आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों को नहीं मिल रहा लाभ
शासन के निर्देशों की उड़ रही धज्जियां
चंदौली जिले में शासन की मंशा थी कि आंगनबाड़ी केंद्रों में पंजीकृत तीन से छह वर्ष के बच्चों को गर्म, पका-पकाया और पौष्टिक भोजन प्रतिदिन उपलब्ध कराया जाए, ताकि उनका पोषण स्तर सुधरे और स्कूल पूर्व शिक्षा के लिए उनका स्वास्थ्य मजबूत हो। लेकिन चंदौली जनपद के अधिकतर आंगनबाड़ी केंद्रों में हॉट कुक्ड मील योजना सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह गई है। ज़मीनी हकीकत यह है कि अधिकतर बच्चों को न तो गर्म भोजन मिल रहा है, और न ही निर्धारित पोषाहार।
योजना का उद्देश्य रह गया अधूरा
आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को गर्म पका भोजन देने के उद्देश्य से डेढ़ वर्ष पूर्व शुरू की गई यह योजना अभी तक पूरी तरह से लागू नहीं हो पाई है। शासन के निर्देशों के बावजूद 1877 केंद्रों में से अधिकांश केंद्रों पर यह सुविधा नहीं दी जा रही है।
सिर्फ कागजों में चल रही है योजना
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भोजन या पोषाहार देने की जगह कोरम पूर्ति में जुटी हुई हैं। भोजन वितरण की जानकारी कागज़ों में दर्शा दी जाती है, जबकि हकीकत में अधिकांश बच्चों को ना तो भोजन दिया जा रहा है और ना ही उसकी गुणवत्ता की जांच की जा रही है।
शासन की गाइडलाइन: लेकिन पालन नहीं
शासन द्वारा यह निर्देशित किया गया था कि सभी खंड विकास अधिकारी, जिला पंचायत राज अधिकारी, बेसिक शिक्षा अधिकारी, तथा बाल विकास परियोजना अधिकारी योजना की सघन मॉनीटरिंग करें। ग्राम पंचायतों को भी सहयोग देने को कहा गया था, लेकिन यह सहयोग ज़मीनी स्तर पर कहीं नहीं दिख रहा है।
एमडीएम के अनुसार मिलना था भोजन
योजना के अनुसार आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को प्राथमिक विद्यालयों की मिड डे मील योजना के मीनू के अनुसार भोजन देना था। प्रति बच्चे 4.50 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से 70 ग्राम तैयार भोजन देना तय हुआ था, लेकिन यह व्यवस्था भी सिर्फ कागजों पर ही सीमित रह गई।
रसोई व्यवस्था भी अधूरी
निर्देश था कि गर्म खाना उसी परिसर में बने रसोईघर में तैयार किया जाए, लेकिन कई केंद्रों पर रसोईघर ही मौजूद नहीं हैं। जहां रसोई है, वहां रसोइयों की अनुपस्थिति और सामग्री की कमी के कारण खाना नहीं बन रहा है।
खाद्य सामग्री कोटेदारों से आनी थी, वह भी नहीं पहुंची
चावल और गेहूं की आपूर्ति खाद्य एवं रसद विभाग द्वारा कोटेदारों के माध्यम से आंगनबाड़ी केंद्रों तक की जानी थी, लेकिन कई जगहों पर सामग्री या तो समय से नहीं पहुंची या फिर पहुंची ही नहीं।
निगरानी तंत्र भी निष्क्रिय
योजना के अनुश्रवण के लिए जिला स्तरीय और खंड स्तरीय टास्क फोर्स गठित की गई थी, लेकिन उनका निरीक्षण भी औपचारिक बनकर रह गया है। हर माह रिपोर्ट बनती है, लेकिन न तो कोई सुधार होता है और न ही किसी पर कार्रवाई होती है।
स्थिति सुधारने की आवश्यकता
शासन की मंशा और जमीनी अमल के बीच की खाई दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। यदि समय रहते व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ तो यह योजना भी दूसरी योजनाओं की तरह सिर्फ कागजों में सफल और जमीन पर विफल बनकर रह जाएगी।
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