कैसे रुकेगी जिले में भ्रूण हत्याएं, अधिकारियों को 8 साल बाद भी नहीं मिला 1 भी मुखबिर
आठ साल से हेल्थ डिपार्टमेंट खोज रहा है मुखबिर
मातृ मृत्यु सूचना योजना के काम पर भी आधे एक्टिव
कन्या भ्रूण हत्या रोकने में अब तक रहे हैं विफल
जिले में अवैध अल्ट्रासाउंड और गर्भपात का खेल चोरी-चुपके जारी
चंदौली जिले में गर्भावस्था और प्रसव के दौरान मातृ-मृत्यु दर को कम करने और कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए शासन ने कई महत्वाकांक्षी योजनाएं लागू की हैं, लेकिन आठ साल बाद भी इन योजनाओं का लाभ आमजन तक पहुंचने में असफल साबित हो रहा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत लागू इन पहलों में मुखबीर योजना और मातृ मृत्यु सूचना योजना शामिल हैं।
आपको बता दें कि मातृ मृत्यु योजना के अंतर्गत 49 वर्ष तक की महिलाओं की गर्भावस्था, प्रसव या प्रसव के 42 दिन के भीतर मृत्यु की असली वजह का पता लगाने वाले लोगों को 1000 रुपये का पुरस्कार देने का प्रविधान किया गया है। इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों में यह स्पष्ट है कि आम जनता या स्वास्थ्य कर्मियों से कोई सूचना नहीं मिली है।
इसी तरह, कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए जुलाई 2018 में पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत मुखबीर योजना लागू की गई। योजना के अंतर्गत अल्ट्रासाउंड केंद्रों और नर्सिंग होम में लिंग परीक्षण, गर्भपात कराने वालों की सूचना देने पर 60,000 से 1,00,000 रुपये तक का इनाम देने का प्रावधान है। इसका उद्देश्य अल्ट्रासाउंड केंद्रों में लिंग परीक्षण और अवैध गर्भपात के मामलों को रोकना था।
हालांकि, आठ साल बाद भी जिले में इस योजना के लिए कोई मुखबीर सामने नहीं आया। विभागीय सूत्रों के अनुसार, यह योजना अधिकतर कागजों में ही रह गई है। जिम्मेदार अधिकारियों के अनुसार, स्वास्थ्य कर्मी जानबूझकर शिकायत दर्ज करने और सूचना देने से कतरा रहे हैं। वहीं, आमजन भी इन योजनाओं के बारे में जागरूक नहीं हैं।
विभाग के प्रचार-प्रसार की स्थिति भी निराशाजनक है। मुखबीर योजना और मातृ मृत्यु सूचना योजना का प्रचार सीमित पैमाने पर किया गया और धनराशि का अधिकांश उपयोग केवल कागजी रिपोर्टिंग तक सीमित रहा। इसके कारण आमजन को योजना की जानकारी नहीं मिल पाई और कोई भी मुखबीर सामने नहीं आया।
इस संबंध में मुख्य चिकित्साधिकारी डा. वाईके राय ने बताया कि विभाग ने योजनाओं को प्रभावी बनाने के लिए शुरुआत में व्यापक प्रचार-प्रसार किया था, लेकिन आमजन तक पहुंच में विफलता और विभागीय लापरवाही की वजह से योजना कारगर साबित नहीं हुई। उन्होंने कहा कि यदि स्वास्थ्य कर्मी और आमजन सक्रिय नहीं हुए तो मातृ मृत्यु दर और कन्या भ्रूण हत्या के मामलों को रोकना मुश्किल होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि योजनाओं की सफलता के लिए केवल इनाम और प्रविधान पर्याप्त नहीं है। इसके लिए व्यापक जन-जागरूकता, गंभीर निगरानी और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन की आवश्यकता है।
सच्चाई यह है कि जिले में अब भी अल्ट्रासाउंड सेंटर और नर्सिंग होम में अवैध लिंग परीक्षण और गर्भपात का खेल जारी है। इन घटनाओं की रिपोर्ट आमजन और स्वास्थ्य कर्मियों से नहीं मिलने की वजह से विभाग इन मामलों को रोकने में नाकाम है।
इस प्रकार, आठ साल बाद भी योजनाओं की सफलता के लिए मुख्य चुनौती आमजन की भागीदारी और विभागीय जवाबदेही साबित हो रही है। अगर जल्द सुधार नहीं किया गया, तो माताओं और कन्याओं की सुरक्षा के लिए यह योजना केवल कागजों में ही सीमित रह जाएगी।
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