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..क्या डीएम साहब की पहल से इस विधवा को मिलेगी 9 साल बाद मिलेगी आवास की दूसरी किश्त !

गीता देवी को 9 साल पहले इंदिरा आवास के रूप में 2014 में आवास आवंटित किया गया था, लेकिन पहली किस्त मिलने के बाद उसे कभी भी दूसरी किस्त नहीं मिली, जिससे उसका मकान पूरा नहीं हो पाया।
 

 2014 में मिला था इंदिरा आवास का योजना का लाभ

आवंटित होने के बाद मिली केवल एक किस्त

दूसरी किस्त का कोई पता नहीं

अब फाइल खोज रहे हैं बीडीओ विकास सिंह


 चंदौली जिले के बरहनी विकासखंड के डेड़गांवा गांव की एक विधवा महिला पिछले 9 साल से इंदिरा आवास की अपनी दूसरी किस्त खोज रही है, लेकिन उसे ब्लॉक के भ्रष्ट अधिकारियों और पंचायत के बेईमान प्रतिनिधियों की मदद ना मिलने की वजह से आज भी अपने आवास के लिए परेशान होना पड़ रहा है। गीता देवी को 9 साल पहले इंदिरा आवास के रूप में 2014 में आवास आवंटित किया गया था, लेकिन पहली किस्त मिलने के बाद उसे कभी भी दूसरी किस्त नहीं मिली, जिससे उसका मकान पूरा नहीं हो पाया। वह आज भी इसके लिए जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के कार्यालयों के चक्कर काट रही है। हालांकि बरहनी के बीडीओ विकास सिंह उसकी फाइल खोजने व कारण जानने की कोशिश करने की बात कह रहे हैं।

आपको बता दें कि बरहनी विकासखंड के डेड़गांवा गांव की रहने वाली विधवा गीता को 2014 में इंदिरा आवास आवंटित हुआ था। आवास निर्माण के लिए उस समय दो किस्तों में मिलने वाली धनराशि ₹76,500 में से पहली किस्त के केवल ₹37,500 मिली थी, लेकिन उसके बाद आज तक उसकी दूसरी किस्त नहीं मिली। यह धनराशि कहां चली गई और क्यों नहीं मिली..इसका जवाब किसी के पास नहीं है। 

इसीलिए गीता अपने बूढ़ी सास को लेकर अपने सारे दस्तावेजों, बैंक पासबुक, अप्लीकेशन की कॉपी लेकर कभी ब्लॉककर्मियों के यहां तो कभी जनप्रतिनिधियों के यहां गुहार लगाती रहती है। लेकिन उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है, क्योंकि उसके पास रिश्वत देने के लिए ना तो पैसे हैं और ना ही उसके पास वोट बैंक का कोई बड़ा जनाधार है।  सबका साथ सबका विकास की बात कहने वाले नेता भी इस मामले से कुछ करने से कन्नी काट लेते हैं।

 वहीं बरहनी के बीडीओ विकास सिंह का कहना है कि यह बहुत पुराना मामला है और योजना भी बंद हो चुकी है। फिर भी पुराने कागजात निकलवा कर मामले की जांच कराई जाएगी, ताकि वृद्ध विधवा को इधर-उधर न भटकना पड़े।

 अब देखना यह है कि खंड विकास अधिकारी विकास सिंह अपने इस कथन पर कितने दिन तक टिके रहते हैं और कितनी जल्दी इसकी फाइल को खोज कर इसकी मदद का ईमानदारी से प्रयास करते हैं।

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