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बंदरगाह परियोजना के विरोध में ईशान मिल्की ने अखिलेश यादव से की मुलाकात, जानिए मदद के लिए क्या करेंगे सपा प्रमुख

उन्होंने कहा कि यह जमीन हमारे लिए केवल खेत नहीं है, बल्कि हमारी पीढ़ियों की परंपरा, जीविका और अस्तित्व की पहचान है। इसे छीनना हमारे जीवन को उजाड़ने जैसा है।
 

ताहिरपुर मिल्कीपुर गांव में बन रहे प्रस्तावित बंदरगाह और फ्रेट विलेज का विरोध

गांव वाले बोले- हम विकास के खिलाफ नहीं, परंतु नहीं छोड़ेंगे गांव

अपने गांव का अस्तित्व नहीं मिटाना चाहते 

चंदौली जिले की मुगलसराय विधानसभा के ताहिरपुर मिल्कीपुर गांव में बन रहे प्रस्तावित बंदरगाह और फ्रेट विलेज को लेकर स्थानीय ग्रामीणों में भारी असंतोष और आक्रोश व्याप्त है। इसी मुद्दे को लेकर आज समाजसेवी व सामाजिक कार्यकर्ता ईशान मिल्की ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से लखनऊ में मुलाकात कर पूरे मामले से उन्हें अवगत कराया।

ईशान मिल्की ने इस दौरान एक पत्रक सौंपते हुए कहा कि नियामताबाद ब्लॉक के मिल्कीपुर, मिर्जापुर के रसूलागंज और छोटा मिर्जापुर जैसे गाँवों की जमीनों को जबरन अधिग्रहण किए जाने की योजना सरकार द्वारा बनाई जा रही है। यह खबर गांव में जैसे ही फैली, वहां भय, चिंता और असहायता का माहौल पसर गया। उन्होंने कहा कि यह जमीन हमारे लिए केवल खेत नहीं है, बल्कि हमारी पीढ़ियों की परंपरा, जीविका और अस्तित्व की पहचान है। इसे छीनना हमारे जीवन को उजाड़ने जैसा है।

गांव वाले किसी भी कीमत पर जमीन नहीं देना चाहते
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जब ईशान मिल्की से पूछा कि गांव वालों की राय क्या है, तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि गांववासी किसी भी कीमत पर अपनी जमीन नहीं देना चाहते। वे कहते हैं – “हम जान दे देंगे लेकिन जमीन नहीं देंगे। हम विकास के विरोधी नहीं हैं, परंतु ऐसा विकास जो गांव को ही समाप्त कर दे, वह विनाश है, उन्नति नहीं।”

ईशान मिल्की ने अखिलेश यादव से आग्रह किया कि समाजवादी पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल गांव भेजा जाए ताकि वे प्रत्यक्ष रूप से लोगों की पीड़ा, आंसू और असहायता को देख सकें। उन्होंने कहा कि लोग इस समय बहुत डरे हुए हैं और उन्हें किसी राजनीतिक समर्थन की आवश्यकता है।

अखिलेश यादव ने दिया भरोसा
अखिलेश यादव ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा, “आप सब अपनी जमीन किसी भी हालत में मत देना। जब तक आपकी सहमति नहीं होगी, तब तक कोई भी सरकार आपकी जमीन नहीं ले सकती। यह संवैधानिक अधिकार है।”

उन्होंने यह भी दोहराया कि वह पहले भी यह कह चुके हैं कि गंगा नदी में आज उस प्रकार का जलस्तर नहीं है जिससे कि यह बंदरगाह परियोजना सफल हो सके। उन्होंने इस योजना को अव्यवहारिक और महज एक दिखावटी प्रयास बताया।

सांसद वीरेंद्र सिंह भी उठा चुके हैं मुद्दा
उल्लेखनीय है कि चंदौली के वर्तमान सांसद वीरेंद्र सिंह ‘मस्त’ भी इस मुद्दे को पहले लोकसभा में उठा चुके हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह केवल स्थानीय स्तर का मामला नहीं बल्कि राष्ट्रीय मंच पर भी उठाया जा चुका है।

गांवों की संस्कृति और खेती की जमीन खतरे में
स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि यह जमीन अधिग्रहण कर ली गई तो न केवल उनकी खेती की जमीन छिन जाएगी, बल्कि उनकी सांस्कृतिक विरासत भी समाप्त हो जाएगी। उनका पारंपरिक जीवन, आजीविका और सामाजिक ढांचा पूरी तरह से टूट जाएगा। इससे न सिर्फ आर्थिक संकट आएगा, बल्कि मानसिक और सामाजिक अस्थिरता भी पैदा होगी।

ग्रामीणों की लड़ाई जमीन के अस्तित्व की लड़ाई
ईशान मिल्की की यह पहल केवल एक व्यक्ति की आवाज नहीं बल्कि हजारों ग्रामीणों की भावनाओं और भविष्य की लड़ाई है। यह मुद्दा इस बात की गवाही देता है कि देश में विकास की परिभाषा केवल शहरीकरण या उद्योग लगाना नहीं हो सकता, बल्कि उसमें लोगों की सहमति, संस्कृति और जीवनशैली की रक्षा भी अनिवार्य होनी चाहिए।

अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में समाजवादी पार्टी और अन्य राजनीतिक दल इस मुद्दे को किस तरह से आगे बढ़ाते हैं, और क्या सरकार लोगों की बात सुनते हुए इस विवादित परियोजना पर पुनर्विचार करेगी या नहीं। फिलहाल तो गांव के लोगों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे अपनी जमीन बचाने के लिए हर स्तर पर संघर्ष के लिए तैयार हैं।

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