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खंडवारी कॉलेज प्रशासन से छीन ली बंजर जमीन, कोर्ट में फैसला करके लगा दिया सरकारी बोर्ड

चहनिया स्थित खंडवारी विद्यालय परिसर में अपनी कोर्ट लगाकर 1999 में ग्राम सभा के बंजर जमीन को खंडवारी देवी विद्या मंदिर खेल की मैदान के नाम पर पट्टा की जमीन मिलने और उक्त भूमि पर खंडवारी महाविद्यालय का भवन बनने पर उप जिलाधिकारी ने उक्त पट्टे को रद्द कर दिया है
 

उपजिलाधिकारी सकलजीहा ने कॉलेज में लगायी कोर्ट

पट्टे वाली जमीन को घोषित किया गया बंजर

हाईकोर्ट के आदेश को दरकिनार करने का लगाया जा रहा है आरोप

 

चंदौली जिले की सकलडीहा तहसील के उपजिलाधिकारी द्वारा शुक्रवार को चहनिया स्थित खंडवारी विद्यालय परिसर में अपनी कोर्ट लगाकर 1999 में ग्राम सभा के बंजर जमीन को खंडवारी देवी विद्या मंदिर खेल की मैदान के नाम पर पट्टा की जमीन मिलने और उक्त भूमि पर खंडवारी महाविद्यालय का भवन बनने पर उप जिलाधिकारी ने उक्त पट्टे को रद्द कर दिया है और उक्त भूमि को ग्राम सभा की बंजर भूमि में दर्ज करने का आदेश जारी किया है।

इस आदेश को एसडीम के उपस्थिति में पढ़कर ग्रामीणों को सुनाया गया और मौके पर उक्त विद्यालय परिसर की भूमि पर सरकारी बोर्ड भी लगा दिया गया है। इस कार्यवाही को देखते हुए क्षेत्र में सरकारी जमीन कब्जा करने वालों को नया संदेश मिल  गया है।

आपको बता दें कि चहनिया में शिक्षा के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले इस खंडवारी कॉलेज के परिसर में प्राइमरी शिक्षा से लेकर BA, MA, B.ED. के  साथ ही प्राविधिक शिक्षा दी जाती है। जिले में तमाम विषयों की पढ़ायी के के लिए खंडवारी शिक्षण संस्थान की एक अलग पहचान है। इसी को लेकर ग्रामीणों द्वारा शिकायत की गई थी।

 शिकायत को जांचने व परखने के बाद उपजिलाधिकारी सकलडीहा द्वारा कोर्ट लगाकर शिक्षण संस्थान के निर्माण के समय खाता संख्या 488 आराजी नंबर 138 रकबा 0.455 हेक्टेयर भूमि लगभग दो बाई सरकारी भूमि का अवलोकन किए बगैर या फिर जानबूझकर जमीन हड़पने के नीयत से महाविद्यालय का निर्माण कर लिया गया है।  इसके संबंध में ग्रामीणों का आरोप है कि निर्माण के समय उक्त कार्य को रोका गया था। इसके बाद भी विद्यालय प्रशासन मामले को लेकर कमिश्नरी तक गया, लेकिन उसे कोई राहत नहीं मिली ।

 khandawari school

इसके बाद उक्त जमीन पर महाविद्यालय का निर्माण कराने के बाद आपसी मिलीभगत से 1999 में बंजर जमीन को विद्यालय के खेल के नाम पर पट्टा कर दिया गया, जबकि पट्टे का कोई भी वैधानिक कागजात रिकॉर्ड में मौजूद न होने के कारण कागजात के अभाव में कमिश्नरी से मुकदमा हार गए। उसके बाद मामले को उच्च न्यायालय ले जाकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा रहा है ।

स्कूल व कॉलेज के नाम पर राहत देने के लिए खंडवारी प्रशासन को भी सुनने का मौका दिया गया । इसके इसी लिए एसडीएम सकलडीहा अनुपम मिश्रा ने पेशकार आनंद कुमार श्रीवास्तव, लेखपाल सुभाष, नायब तहसीलदार अजीत जायसवाल के साथ खंडवारी विद्यालय परिसर में कोर्ट लगा दिया गया और उक्त भूमि पर लेखपाल के आख्या पर एसडीएम ने उक्त जमीन को श्रेणी 38/06 के तहत छल से सरकार की जमीन पर अपना नाम कराए जाने को अवैधानिक करते हुए जमीन को जमीन को श्रेणी 05 में दर्ज करने का आदेश जारी कर दिया।  साथ ही  नायब तहसीलदार को निर्देशित किया कि खतौनी में उक्त जमीन को बंजार दर्ज किया जाए। एसडीएम के इस निर्णय से विद्यालय से परिवार में हड़कंप मच गया और उक्त जमीन पर सरकारी जमीन होने का बोर्ड भी लगा दिया गया है।

इस संबंध में विद्यालय के आशुतोष कुमार सिंह ने बताया कि जब हाईकोर्ट का आदेश है तो उसे खारिज करने का अधिकार न ही उपजिलाधिकारी को है और न ही कमिश्नर को। लेकिन उपजिलाधिकारी द्वारा किसी नाराजगी के चलते जानबूझकर ऐसा कार्य किया गया है। इसके खिलाफ विधिक राय लेकर न्यायालय  न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि पहले वादी के रूप में लेखपाल था लेकिन बाद में गांव वालों को भी इसमें शामिल किया गया है, जो कि पूरी तरह से गलत है।

वहीं इस संबंध में उप जिलाधिकारी अनुपम मिश्रा ने बताया कि ग्राम सभा के बंजर भूमि को गलत ढंग से खंडवारी विद्यालय के खेल के मैदान के नाम पर पट्टा कराया गया था। यह शिकायत जांच में सच पायी गयी। फिलहाल में उक्त जमीन में कुछ हिस्से में  महाविद्यालय की बाउंड्री है, जिसकी नापी कराई जाएगी। महाविद्यालय का जितना भवन बंजर जमीन में  पाया जाएगा तो उसे गिरा दिया जाएगा। इसके साथ ही विद्यालय प्रबंधन से क्षतिपूर्ति भी ली जाएगी।

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इस मामले में कोर्ट के दौरान प्रतिवादी के अधिवक्ता ने कहा कि जब उपजिलाधिकारी से मामले को लेकर और भी जानकारी मांगी जा रही थी, तो उसका कोई जवाब  नहीं दिया जा रहा था। साथ ही साथ मनमाने तरीके से अपना बोर्ड लगाकर चले गए।

 अब देखना है कि  हाईकोर्ट के आदेश को किस आधार पर उपजिलाधिकारी द्वारा खारिज किया जा रहा है और हाईकोर्ट के आदेश को न मानते क्यों ऐसी कार्यवाही की जा रही है। आखिर इस विद्यालय को लेकर तहसील प्रशासन की जो आपत्ति है उसको कितना जायज ठहराया जाता है। साथ ही कब्जे वाले स्ट्रक्चर को कब व कैसे ध्वस्त किया जाता है ।

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