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ऐसे थे बाबा कीनाराम, इसीलिए योगी ने किया नामकरण का ऐतिहासिक फैसला

चंदौली जिले में जैसे ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चंदौली जिले के राजकीय मेडिकल कॉलेज का नाम बाबा कीनाराम के नाम पर रखने की घोषणा की तो लोग सोशल मीडिया पर एक्टिव हो गए
 
ऐसे थे बाबा कीनाराम 
इसीलिए योगी ने किया नामकरण
जानिए आखिर बाबा कीनाराम कौन थे 

चंदौली जिले में जैसे ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चंदौली जिले के राजकीय मेडिकल कॉलेज का नाम बाबा कीनाराम के नाम पर रखने की घोषणा की तो लोग सोशल मीडिया पर एक्टिव हो गए और बाबा कीनाराम के बारे में जानकारियां एकत्रित करने लगे। वैसे तो चंदौली जिले के साथ-साथ पूरे पूर्वांचल और बिहार के कई जिलों तक बाबा के भक्त और समर्थक फैले हुए हैं और वह उनके बारे में बहुत कुछ जानते हैं, लेकिन प्रदेश और देश में बहुत सारे ऐसे लोग भी हैं जिनको बाबा कीनाराम के बारे में बहुत कुछ नहीं पता है।

 ऐसे लोगों को हम बताने की कोशिश करेंगे कि आखिर बाबा कीनाराम कौन थे और कैसे उन्होंने अघोर पीठ की स्थापना करने के साथ-साथ मानव जीवन शैली को एक नया रूप देने की कोशिश की और कैसे उन्होंने अपने आध्यात्मिक गुणधर्म को सहज सरल सूत्रों के जरिए जन-जन तक पहुंचाने का काम किया।

 आपको बता दें कि चंदौली जिले के रामगढ़ में रहने वाले एक रघुवंशी क्षत्रिय परिवार में बाबा कीनाराम का जन्म हुआ था। बताया जाता है कि अकबर सिंह के घर में सन 1601 में जन्मे बाबा कीनाराम बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक संस्कारों में घुलने मिलने लगे थे। अपने वाले काले जीवन में ही उन्होंने कई घटनाओं के जरिए अपने आध्यात्मिक शक्ति का एहसास कराना शुरू कर दिया था। वह एक स्थान पर रहना पसंद नहीं करते थे, इसीलिए वह घर से विरक्त होकर निकल पड़े और घूमते फिरते बलिया के कामेश्वर धाम रामानुज संप्रदाय के गृहस्थ संत सेवादास की सेवा में जा पहुंचे। बाबा ने उनके किशोर मन को परखने की दृष्टि से परीक्षा ली तो वह भी आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने इनके अंदर एक असामान्य सिद्धि देखी और वह इनको मंत्र दीक्षा देने के लिए राजी हो गए।

कहा जाता है कि कारो के कामेश्वर धाम में साधनारत बाबा रोजाना आधी रात को पैदल करीमुद्दीनपुर के कष्टहरणी भवानी मंदिर हो आते। उन्हें माता कष्टहरणी ने अपने हाथों प्रसाद प्रदान कर सिद्धि दी। पत्नी की मृत्यु के बाद जब महात्मा शिवाराम ने पुनर्विवाह किया तो बाबा कीनाराम का उनसे मोहभंग हो गया। गिरनार गए जहां उन्हें दत्तात्रेय के दर्शन हुए। हिमालय की कंदराओं में वर्षों कठिन तप के बाद जब बाबा कीनाराम वाराणसी आए तो हरिश्चंद्र घाट पर औघड़ बाबा कालूराम के पास पहुंचे। 

Baba Kinaram Janmotsava

ऐसा माना जाता है कालूराम दत्तात्रेय स्वरूप ही थे, जो बड़े प्रेम से दाह संस्कार के बाद बिखरी खोपडिय़ों को पास बुलाते और चने खिलाते। बाबा कीनाराम को यह सब व्यर्थ लगा और उन्होंने अपनी सिद्धि शक्ति से इसे रोक दिया। कुछ ही देर में कालूराम ने ध्यान लगाकर समझ लिया कि यह शक्ति केवल कीनाराम में है। उसके बाद उन्होंने अनेक परीक्षाएं लीं और असल रूप में दर्शन दिया। क्रींकुंड ले आए और बताया कि इस स्थान को गिरनार समझो। यहां सभी तीर्थों का फल मिल जाएगा। 

कहा जाता है कि बाबा कीनाराम ने इसके बाद प्रथम गुरु शिवाराम के नाम पर चार मठ तो दूसरे गुरु औघड़ बाबा कालूराम की स्मृति में बनारस के क्रींकुंड, चंदौली के रामगढ़, गाजीपुर के देवल व जौनपुर के हरिहरपुर में चार औघड़ गद्दियां स्थापित कीं।

अघोराचार्य बाबा कीनाराम ने 16वीं सदी के उत्तराद्रर्ध में काशी के केदारखंड स्थित उसकी मूलपीठ पर औघड़दानी शिव व भगवान दत्तात्रेय द्वारा प्रवर्तित अघोर दर्शन को पुनप्रतिष्ठित किया तो अनादि काल से मानवीय जीवन शैली का अंग रहा यह मत एक बार फिर अपने पूर्ण प्रभाव के साथ अस्तित्व में आया। अनेकानेक चमत्कारों व साधना के उच्चतम शिखर की उपलब्धियों के दम पर बाबा कीनाराम ने इसके आध्यात्मिक गुण-धर्म को सहज-सरल सूत्रों के रूप में जन-जन तक पहुंचाया।

Baba Kinaram Janmotsava

कहा जाता है कि अघोराचार्य बाबा कीनाराम जी के 170 वर्ष की आयु में समाधिस्थ होने के बाद पीठ के पीठाधीश्वरों की श्रृंखला की 11 स्वर्णिम कडिय़ों के साथ फलती-फूलती रही। वर्तमान में अघोरी बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी इस अजस्त्र परंपरा के ध्वज वाहक स्वरूप में पूजित प्रतिष्ठित हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद बाबा कीनाराम का गुणगान करते हुए उनके कार्यों के बारे में लोगों को बताया और कहा कि यह एक सराहनीय पहल है कि चंदौली के मेडिकल कालेज को एक ऐसे संत को समर्पित किया जा रहा है जिन्होंने अपना पूरा जीवन जन कल्याण के लिए समर्पित कर दिया था।

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