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...इसलिए भाजपा की पहली पसंद बन सकते हैं सुशील सिंह, खत्म करेंगे अंसारी-फेमिली का दबदबा..!

 भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों को जीतने का लक्ष्य बना रखा है। इसके लिए हर एक सीट पर अलग तरीके की रणनीति बनाई जा रही है।
 

गाजीपुर लोकसभा सीट पर भाजपा की नजर

सुशील सिंह पर है भाजपा आलाकमान की नजर

इलाके में सक्रिय हो गए हैं खास लोग

मुहर लगते ही सक्रिय हो जाएगी पूरी 'सुशील सिंह ब्रिगेड'

चंदौली जिले के पड़ोस में स्थित गाजीपुर लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी की खास नजर है। मुख्तार अंसारी की मौत के बाद गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी को मिलने वाली सहानुभूति को देखकर भारतीय जनता पार्टी खास तौर पर एक नई रणनीति बना रही है, ताकि गाजीपुर संसदीय सीट को हर हालत में जीता जा सके। साथ ही 2019 में छिन गयी सीट को भारतीय जनता पार्टी की झोली में एक बार फिर से डाला जा सके।

कांबो पैक वाली राजनीति करने के माहिर खिलाड़ी
 भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद मनोज सिन्हा के साथ-साथ पूर्व विधायक कृष्षानंद राय की पत्नी अलका राय की दमदार दावेदारी के बावजूद इस सीट के लिए मुख्तार अंसारी एंड कंपनी के कट्टर प्रतिद्वंद्वी रहे बृजेश सिंह के भतीजे सुशील सिंह को चुनाव मैदान में उतरा जा सकता है। सुशील सिंह फिलहाल चंदौली जनपद की सैयदराजा सीट से भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं। उनके अंदर किसी भी गढ़ में जाकर करके जीत हासिल करने की महारत हासिल है। वह जनबल-धनबल-बाहुबल का कांबो पैक वाली राजनीति करने के माहिर खिलाड़ी हैं।

 मिशन 80 के लिए कोशिश
 भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों को जीतने का लक्ष्य बना रखा है। इसके लिए हर एक सीट पर अलग तरीके की रणनीति बनाई जा रही है। कुछ ऐसा ही भारतीय जनता पार्टी के द्वारा गाजीपुर लोकसभा सीट पर किया जा रहा है। बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर 2019 में गाजीपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीतने वाले अफजाल अंसारी को अबकी बार किसी भी कीमत पर हराना चाहती है। अबकी बार समाजवादी पार्टी ने अफजाल अंसारी को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है। इसलिए भारतीय जनता पार्टी की कोशिश है कि अफजाल अंसारी को एक ऐसे कैंडिडेट से घेर दिया जाए, जिसके चक्रव्यूह से अफजाल अंसारी बाहर न निकल पाएं।  इसीलिए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में इस सीट के लिए गोपनीय तरीके से मंथन चल रहा है।

MLA Sushil Singh

इलाके में पहले इस बात की चर्चा थी कि गाजीपुर लोकसभा सीट सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के खाते में जाएगी और इस सीट पर माफिया डॉन बृजेश सिंह चुनाव लड़ सकते हैं, ताकि मुख्तार एंड कंपनी को अच्छी टक्कर दी जा सके। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के आला नेताओं की कुछ आपत्तियों के कारण  सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेताओं कि इस रणनीति को अमली जवाब बनाने में दिक्कतें आ रही हैं। इसीलिए भारतीय जनता पार्टी गाजीपुर में एक बार फिर से अपना कैंडिडेट उतरना चाहती है।


मुख्तार अंसारी एंड कंपनी के राजनीतिक खात्मे के लिए

कहा जा रहा है कि मुख्तार अंसारी की मौत के बाद गाजीपुर में अफजाल अंसारी को चुनाव में सिंपैथी वोट भी मिल सकता है। इसीलिए भारतीय जनता पार्टी एक ऐसे बड़े चेहरे पर अपना दांव लगाना चाहती है जो अंसारी परिवार की हनक को कमजोर करते हुए इस सीट को जीतने की गारंटी ले। इसमें सैयदराजा के विधायक सुशील सिंह फिट बैठ रहे हैं। विधायक सुशील सिंह पहला चुनाव हारने के बाद अपनी चुनावी रणनीति और प्रबंधन के दम पर हर तरह के चुनाव जीतने का मद्दा रखते हैं। इसीलिए भारतीय जनता पार्टी की नजर में वह एक मजबूत कैंडिडेट हो सकते हैं और उनके परिवार की मुख्तार अंसारी के परिवार से पुरानी अदावत भी चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा कर सकती है।

MLA Sushil Singh

 आपको याद होगा कि 2014 के चुनाव में गाज़ीपुर सीट को तीसरी बार भाजपा के लिए मनोज सिन्हा ने जीती थी लेकिन उनको यह जीत कांटे की टक्कर में मिली थी और वह केवल 33000 वोट से चुनाव जीत पाए थे। लेकिन मोदी सरकार में मंत्री रहते हुए मनोज सिंह 2019 के चुनाव में समाजवादी पार्टी बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन के प्रत्याशी अफजाल अंसारी से एक लाख से अधिक वोटो से हार गए। इतना ही नहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी गाजीपुर जिले से एक भी विधायक जीत नहीं सके, लेकिन अब समीकरण बदल गया है। क्योंकि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी अब सपा के साथ नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी के साथ है, ऐसे में कुछ वोटों का फर्क जरूर दिखाई देगा।

इसलिए चूक जाएंगे मनोज सिंहा
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस सीट पर एक बार फिर से मनोज सिन्हा या उनके बेटे को मौका दिया जा सकता था, लेकिन भारतीय जनता पार्टी शायद इस ऑप्शन को नीचे रखे हुए हैं। हालांकि मनोज सिंहा 1996 में पहली बार सांसद बने थे और 1998 में उनको हार का सामना करना पड़ा था, जबकि 1999 में दूसरी बार और 2014 में तीसरी बार सांसद बने थे। इसके बाद 2019 में वह मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी के हाथों हार गए थे और उसके उपरांत उनको मुख्यधारा की राजनीति से अलग करके जम्मू कश्मीर में उपराज्यपाल बना दिया गया था।

वहीं एक और नाम पर भारतीय जनता पार्टी के लोग विचार कर रहे थे, जिसमें अलका राय का नाम सामने किया जा रहा है। अलका राय पूर्व भाजपा विधायक स्वर्गीय कृष्णानंद राय की पत्नी हैं और 2005 में उनकी हत्या के बाद विधायक चुनी गईं थीं। 2017 में भी उन्होंने मोहम्मदाबाद सीट पर जीत हासिल की थी, लेकिन 2022 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी और मुख्तार अंसारी के भतीजे मन्नू अंसारी से हार का सामना करना पड़ा था।

MLA Sushil Singh

हारे घोड़ों पर नहीं लगाना चाहती है दांव
कहा जा रहा है कि  हार के कारण इन दोनों प्रत्याशियों को भारतीय जनता पार्टी एक और मौका नहीं देना चाहती। इसीलिए विधायक सुशील सिंह का नाम आगे किया जा रहा है। 2002 के विधानसभा चुनाव में करीबी हार के बाद सुशील सिंह कभी चुनाव नहीं हारे हैं। वह 2007 में धानापुर विधानसभा सीट पर सपा की उम्मीदवार को हराकर बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर विधानसभा में पहुंचे थे। इसके बाद परिसीमन के बाद बनी सकलडीहा विधानसभा सीट पर वह निर्दलीय विधायक के रूप में जीतकर अपनी हनक दिखा चुके हैं। जहां पर सारे समीकरण तोड़ते हुए जीत हासिल की थी।

इसके अलावा 2017 और 2022 में वह भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर सैयदराजा विधानसभा सीट से उतरे और यह सीट उन्होंने समाजवादी पार्टी से छीनने के बाद अपने पास कायम रखी है। उनके इस जलवे के चलते 2024 में उनको सांसद बनाने के लिए सोचा जा रहा है।

मुस्लिम वोटरों को खींचने की है शक्ति
 विधायक सुशील सिंह अपनी चुनावी रणनीति बनाने और उसे क्रियान्वित करने के लिए जाने जाते हैं। वह जनबल, धनबल बाहुबल और चुनावी मैनेजमेंट में मुख्तार अंसारी एंड कंपनी को अच्छी टक्कर दे सकते हैं। इसीलिए माना जा रहा है कि वह भारतीय जनता पार्टी के एक बड़े विकल्प के रूप में सामने लाये जा सकते हैं। अगर अफजाल अंसारी की ओर मुस्लिम वोट जाने लगेगा तो उसे अपनी ओर रोकने का माद्दा सुशील सिंह में है, क्योंकि उनके पास ऐसे भी प्रचारकों की टीम है जो मुस्लिम वोटों को अपनी ओर खींच सकती है। यह कार्य वह सैयदराजा और सकलडीहा विधानसभा में पहले भी कर चुके हैं।

MLA Sushil Singh

हालांकि विधायक सुशील सिंह अभी इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन उनकी खामोशी एक बड़ा संदेश दे रही है। उनके कुछ करीबी गाजीपुर इलाके में सक्रिय भी हैं और वह तेजी से जनसंपर्क कार्य शुरू कर चुके हैं। अगर सब कुछ ठीक रहा तो भारतीय जनता पार्टी वैश्य, ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, कायस्थ, राजभर और चौहान समेत कई जातियों के वोटों को समेटने में सफल हो सकती है। इसी फार्मूले पर सुशील सिंह एंड कंपनी काम कर रही है। सुशील सिंह का विरोध मनोज सिंहा व अलका राय का परिवार भी नहीं करेगा क्योंकि सुशील सिंह दोनों परिवारों के करीबी रहे हैं और चुनाव में दोनों नेताओं की मदद कर चुके हैं।

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