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कौन दिलाएगा बंदरों के आंतक से मुक्ति, सेंचुरी एरिया में लगभग 18 हजार बंदर

चंदौली जिले में काशी वन्य जीव प्रभाग के चंद्रप्रभा वन्य जीव बिहार में बंदरों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। वन्य जीवों की गणना में फिशिंग केट, काला हिरन, सूकर, हिरन, चौसिधा, वारासिंघा आदि वन्य जीव की संख्या शून्य है।
 

बनारस से छोड़े गए बंदरों ने ठौर ठिकाना बदला

नगर व बस्तियों में आतंक मचा रहे हैं खतरनाक बंदर

 बंदरों ने अब तक 300 लोगों को किया जख्मी

चंदौली जिले में काशी वन्य जीव प्रभाग के चंद्रप्रभा वन्य जीव बिहार में बंदरों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। वन्य जीवों की गणना में फिशिंग केट, काला हिरन, सूकर, हिरन, चौसिधा, वारासिंघा आदि वन्य जीव की संख्या शून्य है। वही गुलदार (तेंदुआ), भेड़िया, लोमड़ी, लकड़बग्घा, भालू आदि हिंसक नर व मादा बड़ी संख्या में मौजूद हैं।


आपको बता दें कि नगर से लेकर गांवों में ठौर ठिकाना जमा चुके बंदरो के हमले से अब तक लगभग तीन सौ लोग जख्मी हो चुके हैं। दो वर्ष पूर्व सिकंदरपुर में प्रियांशी पाठक व पिछले माह हेतिमपुर में चालक हर्षित की मौत हो चुकी है। लोग इन बंदरों को गौरका कटहवा चंदर के नाम से जानने व पहचानने लगे हैं। जंगलों में छोडे गए यह बंदर वस्तियों में लौट आए है। लगभग 10 वर्ष पूर्व बनारस से बड़ी तादाद में बंदरों को चंद्रप्रभा वन्य जीव बिहार के सेंचुरी एरिया में छोड़ा गया। मकसद रहा कि शहरों, महानगर में कटहवा बंदरों से निजात दिलाते हुए वन्य जीव सेंचुरी एरिया में छोड़ दिए जाने से जीवन पर खतरा नहीं होगा। लेकिन चंद्रप्रभा वन्य जीव के अभ्यारण्य क्षेत्र के भीतरी भाग में बंदरों को न छोड़कर सड़क किनारे छोड़ दिए जाने से क्षेत्र के सभी गांव में खतरा बना हुआ। 


कटहवा बंदरों का झुंड नगर समेत गरला, दुबेपुर, पीतपुर, रघुनाथपुर, रामपुर, रामपुर कला, मुबारकपुर, मुजफ्फरपुर आदि गांवों में तौर ठिकाना जमा लिए हैं। इनकी संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही गई। आम जन पर हमला बोलना आम बात हो गई। 


यह है वन्य जीव 


तेंदुआ, भालु, चिकारा, चीतल, चौसिंहा, सांभर, लकड़बग्घा, लोमड़ी, जंगली सूकर, जंगली बिल्ली, शाही, खरगोश, बंदर, लंगूर, नीलगाय आदि पाए जाते हैं।


सेंचुरी में हैं 18 हजार बंदर


वन्य जीवों की हुई गणना में चंद्रप्रभा वन्य जीव सेंचुरी एरिया में लगभग 18 हजार बंदर हैं। कटहवा बनारसी बंदर सेंचुरी एरिया के भीतरी भाग में नहीं है। वर्ष 1957 में स्थापित भूखंड वन्यजीवी, पक्षियों व सरीसृप प्रजातियों के जीवों के लिए बेहद अनुकूल साबित होता रहा है। वन्य जीव अभ्यारण्य की स्थापना के बाद यहां गुजरात व राजस्थान के जंगली जानवरों शेर, बाघ को छोड़ा गया था।


इस सम्बंध में रामनगर काशी वन्य जीव प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी दिलीप श्रीवास्तव का कहना है कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम से बंदरों को बाहर कर दिया गया है। जंगल के बाहर बंदरों द्वारा की गई घटना की जिम्मेदारी वन विभाग की नहीं है। नगर व ग्राम पंचायत इन बंदरों को पड़कर धनघोर जंगल में छोड़कर नगर वासियों, ग्रामीणों को सुरक्षित करने का कार्य करें।

                                                                                                                                                                                                                                                

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