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नौगढ़ में चौपाल का बहिष्कार: खाली कुर्सियों ने अफसरों को दिखाया आईना

गांव के लोग लगातार दो महीने से देख रहे थे कि चौपाल में न तो अधिकारी पहुंचते हैं और न ही कोई समाधान होता है। सिर्फ़ पंचायत सचिव खानापूर्ति कर चले जाते थे।
 

दो महीने से अफसरों की गैरहाजिरी से भड़की जनता

ग्रामीणों ने ग़ुस्से में चौपाल का किया बहिष्कार

खाली कुर्सियां बनीं अफसरों की नाकामी का प्रतीक

प्रधान और पंचायत सचिव पर गिरी एसडीएम की फटकार

अगर अफसर गैर-जिम्मेदारी करेंगे तो जनता भी चुप नहीं बैठेगी। पिछले दो महीने से अधिकारी चौपाल से गायब रहे, इस बार ग्रामीणों ने ग़ुस्से में चौपाल को ही ठुकरा दिया। अफसर पहुंचे तो सामने थीं सिर्फ खाली कुर्सियां—और जनता की चुप्पी ही सबसे बड़ा विरोध बन गई। 

चंदौली जिले की तहसील नौगढ़ में “चलो चंदौली प्रशासन आपके द्वारा” अभियान के तहत शुक्रवार को बैरगाढ़ और लक्ष्मणपुर गांव में चौपाल का आयोजन किया गया। लेकिन ये चौपाल प्रशासन के लिए आईना साबित हो गई। महीनों से खानापूर्ति देखकर ग्रामीणों ने तय कर लिया कि अब वे अफसरों को यूं ही मंच सजाने का मौका नहीं देंगे।

दो महीने से अफसर थे नदारद

बताया जा रहा है कि गांव के लोग लगातार दो महीने से देख रहे थे कि चौपाल में न तो अधिकारी पहुंचते हैं और न ही कोई समाधान होता है। सिर्फ़ पंचायत सचिव खानापूर्ति कर चले जाते थे। यही लापरवाही ग्रामीणों के सब्र का बांध तोड़ गई।

खाली पड़ी चौपाल, एसडीएम हुए हक्का-बक्का

जिलाधिकारी चंद्र मोहन गर्ग ने जब अफसरों की लापरवाही पर फटकार लगाई तो इस बार एसडीएम विकास मित्तल खुद लक्ष्मणपुर पहुंचे। लेकिन चौपाल में एक भी फरियादी नहीं दिखा। वहीं बैरगाढ़ गांव में पहुंचे खंड विकास अधिकारी अमित कुमार को भी खाली कुर्सियों का सामना करना पड़ा। दोनों अफसरों को पहली बार एहसास हुआ कि जनता की चुप्पी भी कभी-कभी सबसे बड़ा जवाब बन जाती है।

प्रधान और सचिव को फटकार 

 एसडीएम ने ग्राम प्रधान और पंचायत सचिव को जमकर फटकार लगाई। उन्होंने साफ कहा—“अगर कर्मचारी चौपाल की गंभीरता से खिलवाड़ करेंगे तो सीधे कार्रवाई होगी।” चौपाल के दौरान आईसीडीएस विभाग द्वारा नवजात शिशुओं का अन्नप्राशन और गर्भवती महिलाओं की गोदभराई की रस्में जरूर पूरी कराई गईं, लेकिन मुख्य मकसद यानी जनता से संवाद नदारद रहा।

जनता ने दिखाई अपनी ताकत

ग्रामीणों का यह विरोध साफ संदेश देता है कि अब गांव वाले भी सिर्फ़ सुनने वाले दर्शक नहीं हैं। अगर प्रशासन ‘साहबगिरी’ करेगा तो जनता भी कम नहीं है। इस बार चौपाल की खाली कुर्सियों ने अफसरों को आईना दिखा दिया—और शायद यही जनता की असली ताकत है।

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