जिला अस्पताल की मोर्चरी में लापरवाही का आलम, 7 डीप फ्रीजर में सिर्फ 1 ही चालू
गर्मी में शवों के रखरखाव में अव्यवस्था
4 शव कक्ष वातानुकूलित, लेकिन डीप फ्रीजर अधिकांश खराब
डीप फ्रीजर खराब होने से सड़ने लगे थे शव
सीसीटीवी कैमरे भी हैं नदारद
चंदौली जिले के जिला संयुक्त चिकित्सालय की मोर्चरी व्यवस्था स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोल रही है। शवों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जहां सात डीप फ्रीजर लगाए गए हैं, वहीं वर्तमान में सिर्फ एक डीप फ्रीजर ही क्रियाशील है। गर्मी के मौसम में जब शवों को सुरक्षित रखने की सबसे अधिक आवश्यकता होती है, ऐसे समय में यह लापरवाही गंभीर चिंता का विषय है।
मोर्चरी में शवों को रखने के लिए चार वातानुकूलित कक्ष बनाए गए हैं, जिनमें तापमान दो से आठ डिग्री सेल्सियस तक नियंत्रित रखा जाता है। परंतु डीप फ्रीजर के अधिकतर खराब होने के कारण शवों के सड़ने और दुर्गंध फैलने की आशंका बढ़ जाती है।
सीसीटीवी कैमरे नहीं, निगरानी अधूरी
मोर्चरी में अभी तक सीसीटीवी कैमरों की स्थापना नहीं हो सकी है, जिससे किसी भी आपात स्थिति या हंगामे की घटनाओं का रिकॉर्ड नहीं हो पाता। इससे न सिर्फ सुरक्षा व्यवस्था प्रभावित होती है, बल्कि चिकित्सकों को भी पोस्टमार्टम से जुड़ी परिस्थितियों में परेशानी उठानी पड़ती है।
शवों की देखरेख में कर्मचारियों की कमी
मोर्चरी का संचालन केवल छह चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों और दो फार्मासिस्टों के भरोसे किया जा रहा है। स्टाफ की कमी के कारण कभी-कभी शव लाने और ले जाने में देरी होती है, जिससे परिजनों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, मोर्चरी में वायुरोधी शव कक्ष, वेंटिलेशन, प्रकाश, कीटाणुनाशक छिड़काव, कैडेवर कैरियर और ट्राली जैसी सुविधाएं मौजूद हैं।
72 घंटे तक रखा जाता है अज्ञात शव
अज्ञात शवों को नियमानुसार 72 घंटे तक मोर्चरी में सुरक्षित रखा जाता है। इसके बाद अंतिम कार्रवाई की जाती है। अन्य मामलों में पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिए जाते हैं। शवों का पंजीकरण और पहचान संबंधित रजिस्टर में नियमित रूप से दर्ज किया जाता है।
स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की दरकार
मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. वाईके राय ने बताया कि मोर्चरी में शवों को सुरक्षित रखने की सारी सुविधाएं मौजूद हैं, लेकिन सीसीटीवी कैमरों की स्थापना अभी लंबित है, जिसे जल्द पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है। स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर सरकार भले ही गंभीर हो, लेकिन जमीनी स्तर पर व्यवस्थाएं अधूरी हैं। मोर्चरी जैसी संवेदनशील जगहों पर तकनीकी और मानवीय संसाधनों की कमी न केवल अव्यवस्था को बढ़ावा देती है, बल्कि आमजन की पीड़ा को और गहरा करती है।
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