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अस्पताल के बोर्ड पर दर्ज होगा नवजात शिशुओं का आंकड़ा, आते जाते देख सकेंगे आम लोग

लिंगानुपात के अंतर को कम करने के प्रयास के तहत महिला कल्याण विभाग को सरकारी अस्पतालों व प्रसव केंद्रों में बोर्ड लगवाने के निर्देश दिए गए हैं।
 

लिंगानुपात में सुधार के लिए अस्पतालों में लगेगा बोर्ड

आनलाइन दर्ज होगी रिपोर्ट

बेटा-बेटी के जन्मदर को बराबर करने की तैयारी

लिंगानुपात को बराबर रखने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने नई व्यवस्था

चंदौली जिले में लिंगानुपात के अंतर को कम करने की तैयारी शुरू कर दी गई है। बालक- बालिका के लिंगानुपात को बराबर रखने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने नई व्यवस्था की है। सरकारी अस्पतालों व प्रसव केंद्रों में जन्म लेने वाले शिशुओं का आंकड़ा बोर्ड पर दर्ज होगा। इसके लिए अस्पतालों और केंद्रों पर बोर्ड लगाया जाएगा। बोर्ड ऐसे स्थान पर लगेगा, जिसे हर लोग आसानी से देख सकें। केंद्र में हर माह जन्म लेने वाले नवजात की आनलाइन रिपोर्टिंग दर्ज होगी। यह रिपोर्ट महिला एवं बाल विकास मंत्रालय भारत सरकार को भेजी जाएगी।

आपको बता दें कि जनपद में एक हजार बालक पर 918 बालिकाएं ही हैं। वैसे यह हाल दूसरे जिलों का भी है। लिंगानुपात के अंतर को कम करने के प्रयास के तहत महिला कल्याण विभाग को सरकारी अस्पतालों व प्रसव केंद्रों में बोर्ड लगवाने के निर्देश दिए गए हैं। कन्या भ्रूण हत्या पर बंदिशों के बाद भी पूर्णतया पाबंदी नहीं लग पाई है। इसका नतीजा यह कि बालक बालिका के जन्म संख्या में अंतर रहता है।

बताते चलें कि बालक-बालिका के बीच जन्मदर का अंतर कम करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने कदम उठाया है। इस अंतर से समाज में तमाम तरह की कुरीतियां भी पांव फैला रही हैं। घरेलू हिंसा, महिला उत्पीड़न, दहेज प्रथा जैसी समस्याएं इससे बढ़ रही हैं।

जनपद के इन अस्पतालों में होगी व्यवस्था

 जिला अस्पताल, जिला संयुक्त चिकित्सालय चकिया, पीपी सेंटर पीडीडीयू नगर के अलावा सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बोर्ड लगाने की व्यवस्था होगी। इसके अलावा जिस उप स्वास्थ्य केंद्रों पर प्रसव की सुविधा है वहां भी बोर्ड लगाए जाएंगे। इन अस्पतालों और प्रसव केंद्रों पर जन्म लेने वाले बच्चों का आंकड़ा आनलाइन किया जाएगा।

घर पर जन्म लेने वाले शिशुओं का रखा जाएगा रिकार्ड : अस्पतालों में संस्थागत प्रसव से जन्म लेने वाले शिशुओं का रिकार्ड तो रखा जाता है, लेकिन घरेलू प्रसव दौरान जन्मे बच्चों का डाटा सरकारी रिकार्ड में नहीं जुड़ता।

अब यदि शिशुओं का जन्म घरों पर होता है तो इसका रिकार्ड भी एएनएम व आशा कार्यकर्ताओं को रखना होगा। साथ ही उन्हें यह रिपोर्ट नजदीकी प्राथमिक या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में देनी होगी, ताकि अस्पतालों में जन्म न लेने वाले बच्चों का भी रिकार्ड दर्ज हो सके। इसके लिए एएनएम और आशाओं को प्रशिक्षण भी दिया गया है।

इस संबंध में जिला प्रोबेशन अधिकारी प्रभात कुमार ने बताया कि बालकों की संख्या के बराबर हो, इसके लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान चलाया जा बेटियां भी रहा। इसके अलावा दूसरे प्रयास भी किए जा रहे हैं। बालक- बालिका के को जन्मांतर कम करने की यह पहल है। बोर्ड के जरिये इनके जन्मदर की पहचान होगी। यह व्यवस्था लिंगानुपात के सुधार में कारगर साबित होगा।

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