नौगढ़ में जंगल बचा रहे वनकर्मी पीटे जा रहे हैं, क्या अब लाश पर मुकदमा लिखेगा सिस्टम ?
जंगल पर डंडा राज, पुलिस मौन
प्रशासन सोया—कानून कब जागेगा
वनकर्मियों की तहरीर धूल फांक रही
अतिक्रमणकारी खुलेआम घूम रहे
चंदौली जिले के तहसील नौगढ़ में क्या अब किसी वनकर्मी की लाश ही सबूत बनेगी? या प्रशासन को किसी बड़ी घटना का इंतजार है?
ये सवाल अब जंगल बचाने वालों के चेहरे पर गुस्से की तरह चमक रहे हैं।

गुरुवार की रात मझगाई रेंज के जनकपुर वन क्षेत्र में आरक्षित जंगल की जुताई रोकने गई वन विभाग की टीम पर अतिक्रमणकारियों ने जानलेवा हमला किया। लाठी-डंडों से लैस महिलाओं और पुरुषों की भीड़ ने कर्मचारियों को बंधक बनाकर बेरहमी से पीटा। किसी तरह 112 पर कॉल करने पर पुलिस पहुंची और टीम की जान बच सकी। लेकिन हैरानी की बात यह है कि नामजद तहरीर, मेडिकल रिपोर्ट और प्रत्यक्ष प्रमाण के बावजूद अब तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। थानों में पीड़ित वनकर्मी दौड़ते रहे, लेकिन मुकदमा फाइलों में ही दबा पड़ा है। उल्टे यह कहा जा रहा है कि आप लोग घर में घुसकर महिलाओं से जोर जबरदस्ती कर रहे थे।
जंगल जोतने वालों के हाथ में लाठी, रोकने वालों के शरीर पर जख्म
आपको बता दें कि मझगाई रेंज के अन्तर्गत भैसौड़ा वन ब्लॉक (कंपार्टमेंट नं. 11) में ट्रैक्टर से हो रही अवैध जुताई की सूचना पर वनरक्षक शिवपाल सिंह, रोहित गुप्ता, नरसिंह किशोर, अभिषेक चतुर्वेदी, चालक सुदामा व अन्य कर्मचारी मौके पर पहुंचे थे। ट्रैक्टर लेकर कुछ लोग भागे, लेकिन कुछ ही देर में बड़ी संख्या में लोग लाठी-डंडों के साथ पहुंचे और कर्मचारियों को घेर लिया। सभी को बुरी तरह पीटा गया, कर्मचारी गंभीर रूप से घायल हो गए।
किसी तरह कर्मचारियों ने 112 पर कॉल कर पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने पहुंचकर टीम को मुक्त कराया। सभी घायल वनकर्मियों को तत्काल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया, जहां उनका मेडिकल परीक्षण भी हुआ।

वनदरोगा महेंद्र प्रताप चौहान ने बताया कि जनकपुर गांव के रामनवमी, रमाकांत, विजय, उषा, रामनारायण, अवधेश, राजेश, लक्ष्मण, रामकेश, सुरेश, नरसिंह समेत कई अन्य अज्ञात के खिलाफ नामजद तहरीर दी गई है। वहीं रेंजर मकसूद हुसैन ने बताया कि पहले भी कई घटनाओं में तहरीर दी गई, लेकिन नौगढ़ और चकरघट्टा थाने में मुकदमा दर्ज नहीं किया गया। नक्सल बैठकमें भी अधिकारीयों को रिपोर्ट कर रहे हैं, मगर कार्रवाई वहीं थम जाती है।”
कानून का सवाल .... जब सब कुछ है, फिर मुकदमा क्यों नहीं...
* क्या थानों में तहरीर पर एफआईआर का कानून खत्म हो गया है?
* क्या मेडिकल रिपोर्ट की अब कोई अहमियत नहीं बची?
* क्या नामजद आरोपियों पर कार्यवाही सिर्फ दिखावे की बात बनकर रह गई है?
* जवाब कोई नहीं दे रहा, क्योंकि प्रशासन चुप है और पुलिस आंखें मूंदे बैठी है।
* एसडीएम, सीओ, थाना प्रभारी—सभी को जानकारी है, फिर चुप क्यों हैं?
इस हमले की जानकारी एसडीएम नौगढ़, सीओ और दोनों थानों को है। फिर सवाल उठता है कि:
* एसडीएम बताएं, क्या वह सिर्फ कागज पर जांच बैठाने के लिए बैठे हैं?
* सीओ बताएं, अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
* थाना प्रभारी जवाब दें, क्या वनकर्मियों की तहरीर पर उनका भरोसा नहीं?
* अगर जानलेवा हमले जैसी घटनाओं में एफआईआर तक न लिखी जाए तो फिर कानून का मतलब क्या बचा?
अब जनता पूछ रही है—क्या जंगल को बेचने की छूट दे दी गई है? जंगल को जोतने वाले बेलगाम हैं, पुलिस मौन है, और वनकर्मी जख्मी होकर अस्पताल में हैं। क्या यही है प्रशासन का जंगल बचाओ मॉडल? क्या यही है ‘कानून का राज’?
जब सरकारी कर्मचारी असुरक्षित हो जाएं, थानों में तहरीरें दबा दी जाएं, और हमलावर खुलेआम घूमते रहें—तो यह सिर्फ जंगल पर नहीं, पूरे तंत्र पर हमला है। अब सवाल सिर्फ इतना है —
* “कब जागेगा सिस्टम?”
* “कब उठेगा कलम कानून के पक्ष में?” या फिर
* “किसी वनकर्मी की चिता पर एफआईआर की मोहर लगेगी?”
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