ओडीएफ प्लस का दर्जा देने में नाकों चना चबा रहा विभाग, बहुत कठिन है लक्ष्य पूरा करना
स्वच्छ भारत मिशन का दावा कैसे होगा पूरा
जब अधिकारी देते हैं गलत जानकारी
फर्जी तरीके से हो रहा है भुगतान
सामुदायिक शौचालयों पर लटके हैं ताले
वैसे अगर देखा जाए तो देश व प्रदेश की सरकार का दावा है कि स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के दूसरे चरण में सूबे के सभी गांवों ने ओडीएफ प्लस का दर्जा प्राप्त कर लिया है। जबकि जिले में अभी मात्र 17 प्रतिशत ग्राम पंचायतों को ही ओडीएफ प्लस श्रेणी में गिना जा सकता है।
चंदौली जिले का आलम यह है कि जिले की कुल 1442 गांवों में अभी तक मात्र 42 ग्राम पंचायतें ही ओडीएफ प्लस का दर्जा प्राप्त कर पाई हैं, जबकि इसके लिए अभी 721 ग्राम पंचायतों का चयन किया गया था। गांवों का आलम ये है कि जहां सामुदायिक शौचालय बने भी हैं, वे भी अधूरे हैं या उपयोग में नहीं हैं, वहां कई कारणों से ताला लटका मिलता है। गरीब बस्तियों व गांवों में रहने वाले लोग व्यक्तिगत शौचालयों में लोग उपले और भूसे रखकर उसका उपयोग कुछ और तरीके से कर रहे हैं।
मानक के अनुसार ओडीएफ गांव वह है, जिसने ठोस या तरल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को लागू करने के साथ खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) स्थिति को बरकरार रखा है। आंकड़ों में तो जिले के चयनित गांवों को ओडीएफ कर दिया गया है लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है। कई गांवों में अब तक शौचालय बन ही नहीं पाए है तो कई अनुपयोगी हो गए हैं। किसी में कूड़ा पड़ा है तो किसी में उपले रखे जा रहे हैं। कई शौचालयों पर तो दरवाजा ही नहीं लग पाया है।
कुछ गांवों में पगडंडी व मुख्य मार्गो पर अभी भी ग्रामीण खुले में शौच कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही हाल चहनिया विकासखंड के डेरवा कला, कैली, महरखां, खर्रा व सकलडीहा विकासखंड के आलमपुर, नसीरपुर पट्टन, डेवढिल, इब्राहिमपुर, संघति व सहरोई गांव का है। प्रशासन का ओडीएफ गांवों का दावा सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह गया है।
सामुदायिक शौचालय पर ताला
चहनिया क्षेत्र के सोनबरसा गांव में आबादी से दूर किसानों के निजी खेत में बने सामुदायिक शौचालयों पर चार वर्षों से ताले लटक रहे हैं। झाड़-झंखाड़ से पटे इस सामुदायिक शौचालय को एकबार भी प्रयोग में नहीं लाया जा सका है। चहनिया ब्लॉक के सोनबरसा गांव में पूर्व ग्राम प्रधान कविलाल सोनकर ने एक किसान के निजी भूमि पर आबादी से काफी दूर सामुदायिक शौचालय बनवा दिया, जिसपर चार वर्षों से ताला लटक रहा है। झाड़-झंखाड़ से पटे इस शौचालय तक जाने के लिए रास्ता भी नहीं है। ग्रामीण अभी भी गंगा नदी किनारे घाटों व खेतों में शौचालय करने जा रहे हैं।
अधूरे शौचालय, सफाई के नाम पर लाखों का फर्जी भुगतान
नौगढ़ विकास खंड की 43 ग्राम पंचायतों में 20 सामुदायिक शौचालय अधूरे पड़े हैं। कई शौचालचयों में अभी तक सीट भी नहीं लग पाई है। कहीं विद्युत कनेक्शन नहीं तो कही मोटर ही नहीं लगी है। कहीं-कहीं तो दरवाजा और जंगला भी नहीं लगाए गए हैं। इधर, पंचायत सचिवों ने सभी सामुदायिक शौचालयों को समूहों को हस्तांतरित कर दिया है। इतना ही नहीं समूह के खाते में शौचालयों की सफाई करने के लिए 27- 27 हजार रुपये भी भेज दिए गए हैं।
एक महिला समूह के लोगों ने नाम न छापने के शर्त पर बताया कि सामुदायिक शौचालय प्रयोग के योग्य अभी बनकर तैयार ही नहीं हुआ है। सामुदायिक शौचालयों के बाहर से इस तरह रंगाई-पुताई कर दी गई है कि देखने में वे बेहतर हैं।
इस संबंध में एडीओ पंचायत प्रेमचंद्र ने कहा कि सामुदायिक शौचालय एकदम प्रयोग के योग्य बनकर तैयार हैं। अगर कहीं कमी रह गई है तो उसे पूरा कराया जा रहा है। गांव को गंदगी से मुक्त रखने के लिए लोगों को शौचालय का प्रयोग करना चाहिए। समूह के लोग सामुदायिक शौचालयों की सफाई में लगे हैं। समूह के खाते में तीन-तीन माह का भुगतान कर दिया गया है।
ऐसा बोल रहे डीपीआरओ साहब
जिले के जिला पंचायती राज अधिकारी का दावा है कि जो सामुदायिक शौचालय बंद हैं, उन्हें खुलवाया जाएंगा। ओडीएफ प्लस के लिए चयनित ग्राम पंचायतों को ओडीएफ करने की दिशा में तेजी से काम किए जा रहे हैं। वर्तमान में 42 गांवों में लक्ष्य की प्राप्ति की जा चुकी है। शेष ग्राम पंचायतों में कार्य आरंभ करने के लिए निर्देश दे दिए गए हैं। जनसहयोग से ये काम संभव होगा।
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