SP साहब जांच कराइए : चकरघट्टा इलाके में बढ़ रहा है पशु तस्करी का गोरखधंधा, पुलिस की 'सेटिंग' की भी है चर्चा

नौगढ़-चकरघट्टा इलाके में जारी है तस्करी का खेल
ऐसी हरकतों से उठता है कानून-व्यवस्था पर सवाल
थानाध्यक्ष की गिरफ्तारी के बावजूद जारी है पशु तस्करी
कहीं सब कुछ जान कर अंजान बने हैं आला अफसर
चंदौली जिले के सर्किल नौगढ़ के चकरघट्टा थाना क्षेत्र में पशु तस्करी का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। हर दिन चार से पांच गाड़ियां जंगलों के रास्ते से बिहार बॉर्डर की ओर पशुओं की अवैध तस्करी के लिए जा रही हैं। प्रशासन की निष्क्रियता और पुलिस की ढीली कार्यवाही ने इस अवैध धंधे को और मजबूत किया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कई मामलों में पुलिस और तस्करों के बीच 'सेटिंग' हो जाती है, जिसके चलते गाड़ियां आसानी से निकल जाती हैं। हालांकि, जहां यह सेटिंग नहीं हो पाती या किसी कारण से सौदेबाजी विफल हो जाती है, वहां पुलिस ने कुछ तस्करों को पकड़ने में सफलता पाई है। यह स्थिति न केवल पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े करती है, बल्कि तस्करी के बढ़ते नेटवर्क को उजागर करती है।

तस्करों के कुछ मामले पकड़े, लेकिन प्रभावी कार्रवाई नहीं
हालांकि हाल ही में पुलिस ने कुछ तस्करों को पकड़ा है, लेकिन इन गिरफ्तारियों की संख्या इतनी कम है कि यह पूरे तस्करी नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है। ये मामले तब उजागर हुए जब सेटिंग नहीं हो पाई या सौदेबाजी विफल रही। इससे यह साफ होता है कि तस्करी की जड़ें कितनी गहरी हैं, और इस धंधे में पुलिस के कुछ अधिकारियों की संलिप्तता की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

थानाध्यक्ष के खिलाफ दर्ज कराया था मुकदमा
4 मई को चकरघट्टा थानाध्यक्ष सुधीर कुमार आर्य की गिरफ्तारी के बावजूद तस्करी का कारोबार बंद नहीं हुआ है। पशु तस्करी से संबंधित एक ऑडियो 6 अप्रैल को सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद, पुलिस क्षेत्राधिकारी (सीओ) कृष्ण मुरारी शर्मा ने चकरघट्टा थाने के कारखास संजय यादव के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। इसके बाद आरोपी सिपाही को भगाने के मामले में कुछ दिनों बाद एसपी आदित्य लांग्हे के आदेश पर थानाध्यक्ष सुधीर आर्य के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज किया गया। अगले ही दिन, थानाध्यक्ष को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
आरोपी थानाध्यक्ष को हटा दिया गया, लेकिन तस्करी का नेटवर्क अब भी मजबूत बना हुआ है। चकरघट्टा थाना क्षेत्र में पशु तस्करी पर तभी नियंत्रण संभव होगा जब पुलिस की अंदरूनी मिलीभगत खत्म होगी और प्रशासन ठोस कदम उठाएगा। अगर प्रशासन इस पर सख्ती नहीं बरतता, तो तस्करी का यह अवैध धंधा बेरोक-टोक चलता रहेगा और समाज के लिए खतरा बना रहेगा।
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