सरकारी अफसरों व नेताओं को खुश करने के चक्कर में बाजार से दूर लगा है स्वदेशी मेला, नहीं आ रहे हैं खरीदार
चंदौली मुख्यालय में स्वदेशी मेला फीका
खरीदारों की कमी से उत्पादक निराश
नेता-अफसरों की भीड़ के बाद सूनी रहती हैं कुर्सियां और मेला परिसर
खुद देख सकते हैं मेले की हकीकत बयां करती तस्वीरें
चंदौली जिला मुख्यालय स्थित राधाकृष्ण मैरिज लॉन में चल रहे दस दिवसीय 'उप ट्रेड शो स्वदेशी मेला 2025' में लगातार चौथे दिन भी अपेक्षा के अनुरूप रौनक दिखाई नहीं दे रही है। स्टॉल लगाकर इंतजार कर रहे स्थानीय उत्पादकों को खरीदारों की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिससे वे निराश हैं। मेले में केवल इक्का-दुक्का लोग ही प्रदर्शनी का अवलोकन करने आ रहे हैं, जिससे मेले का उद्देश्य पूरा होता नहीं दिख रहा है।

मेले का मुख्य उद्देश्य स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देना है, और जनपदवासी स्टॉलों पर मौजूद स्वदेशी उत्पादों की सराहना तो जरूर कर रहे हैं, लेकिन उनकी खरीदारी बेहद कम है। व्यापारियों और आयोजकों का मानना है कि मेले को बाजार और शहर के मुख्य केंद्र से दूर लगाए जाने के कारण आम लोगों का रुझान कम रहा है।

खरीदारों की कमी का सीधा असर सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर भी पड़ रहा है। कार्यक्रमों में कुर्सियां खाली दिख रही हैं और दर्शक न होने के कारण कलाकार भी आधे-अधूरे मन से अपनी प्रस्तुति दे रहे हैं। आज मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत लोकगीत की प्रस्तुति हुई, जहाँ कलाकार राधेश्याम ने लोगों को स्वदेशी उत्पादों को अपने जीवन में अपनाने के लिए जागरूक किया। साथ ही, वे गीत के माध्यम से सरकार द्वारा संचालित अन्य महत्वपूर्ण योजनाओं को भी लोगों के बीच पहुँचा रहे हैं।

मेले की एक और विडंबना यह है कि जब भी किसी नेता या वरिष्ठ अधिकारी का दौरा होता है, तभी आस-पास भीड़ जमा होती है, लेकिन उनके जाने के बाद आम लोगों की उपस्थिति नगण्य हो जाती है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि आम लोगों में इस मेले के प्रति कोई खास रुचि नहीं है।

सिद्धार्थ यादव, उपायुक्त उद्योग ने बताया कि कार्यक्रम स्थल पर आकर्षक स्वदेशी स्टॉल लगाए गए हैं। लोगों द्वारा जरी-जरदोजी के उत्पाद, स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं द्वारा निर्मित उत्पाद और हस्तशिल्पियों की कारीगरी काफी पसंद की जा रही है। उन्होंने उम्मीद जताई कि दीपावली महापर्व के अवसर पर आम जनमानस अपने दैनिक जीवन में स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को प्राथमिकता देगा और त्योहार के लिए उपयोगी वस्तुओं की खरीदारी अधिक संख्या में करेगा, जिससे उत्पादकों को प्रोत्साहन मिलेगा। हालांकि, जमीनी हकीकत यह है कि स्टालों पर सन्नाटा पसरा हुआ है, और उत्पादक अब भी खरीदारों के आने का इंतजार कर रहे हैं।

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