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चंदौली में पहली बार भिड़ेंगे BHU के दो धुरंधर, लोकसभा चुनाव में आए आमने-सामने

वहीं चिरईगांव निवासी वीरेंद्र सिंह ने सांख्यिकी से परास्नातक की पढ़ाई के लिए बीएचयू में दाखिला लिया। पढ़ाई के दौरान वे छात्र राजनीति में काफी सक्रिय रहे।
 

सपा के वीरेंद्र सिंह ठोंक रहे हैं ताल

डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय कर रहे हैं हैट्रिक लगाने की तैयारी

बीएचयू से दोनों ने सीखा है राजनीति का ककहरा

चंदौली जिले में भाजपा की ओर से डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय को तीसरी बार प्रत्याशी बनाए जाने के बाद और सपा के टिकट पर कई दलों से दलबदल कर सपा में पहुंचे वीरेन्द्र सिंह को चंदौली लोकसभा का टिकट मिलने के बाद यह पहली बार होगा जब चंदौली सीट पर महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की बगिया के  दो मानस पुत्र आमने-सामने राजनीति के अखाड़े में जोर आजमा रहे होंगे।
आपको बता दें कि वीरेंद्र नाथ सिंह और डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय दोनों ने ही बीएचयू से ही अपनी उच्च शिक्षा ग्रहण की है। सही मायने में कहा जाए तो दोनों धुरंधर नेताओं ने बीएचयू से ही राजनीति का ककहरा सीखा है। मालूम हो कि डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय बीएचयू छात्रसंघ के महामंत्री भी रह चुके हैं।

केंद्रीय मंत्री डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय ने 1977 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जिला संयोजक बनाए गए और 1978 में बीएचयू छात्र संघ के महामंत्री बने। उन्होंने बीएचयू से हिंदी में पीएचडी के साथ-साथ पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट होने की डिग्री हासिल की। इस दौरान वे कई छात्र आंदोलनों में सक्रिय रहे। बीएचयू में पढ़ने के दौरान ही उनका संपर्क भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं से हुआ। जिसके बाद वे राजनीति की मुख्य धारा में आए।

वहीं चिरईगांव निवासी वीरेंद्र सिंह ने सांख्यिकी से परास्नातक की पढ़ाई के लिए बीएचयू में दाखिला लिया। पढ़ाई के दौरान वे छात्र राजनीति में काफी सक्रिय रहे। यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिलने के बाद उनकी पढ़ाई बीच में ही छूट गई। हालांकि बीएचयू से उन्हें काफी कुछ सीखने को मिला। इसके बाद वे विधायक बने और कांग्रेस व लोकतांत्रिक कांग्रेस, बसपा सहित कई दलों में रहकर राजनीति की।

डॉ. पांडेय ने पहली बार 1980 में भाजपा के टिकट पर गाजीपुर जिले की सैदपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े तो पहला चुनाव हार गए। इसके बाद 1991 में पहली बार सैदपुर सीट से विधायक चुने गए। 1996 में दोबारा विधायक बनने के बाद कल्याण सिंह की सरकार में पंचायती राज और नियोजन मंत्री बनाए गए। वहीं वीरेंद्र सिंह 1990 में पहली बार चिरईगांव विधानसभा से चुनाव लड़े और हार गए। दूसरी बार वहीं से चुनाव लड़े और विधायक बने। 2003 में लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी से चिरईगांव से ही विधायक बने और वन मंत्री भी बने। फिर बसपा व समाजवादी पार्टी में भी राजनीति की।

चंदौली लोकसभा सीट पर सातवें और आखिरी चरण में एक जून को वोट पड़ेंगे तो ये दोनों राजनेता एक दूसरे को पटखनी देकर अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश करेंगे। अब देखना यह होगा कि राजनीतिक बिसात पर कौन किसको पटखनी देता है और जनता किसको अपना आशीर्वाद देकर 5 साल तक चंदौली संसदीय क्षेत्र में काम करने का मौका देती है।

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